बिहार चुनाव में एनडीए की बड़ी जीत: क्यों जनता ने फिर से किया भरोसा?
यहां जानें पूरी कहानी
1 months ago
Written By: अनिकेत प्रजापति
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार एनडीए ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। एग्जिट पोल ने भले ही एनडीए की बढ़त दिखाई थी, लेकिन असली नतीजों ने सभी अनुमान पीछे छोड़ दिए। महागठबंधन को उम्मीद से भी कम सीटें मिलीं और विपक्ष को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा। सवाल यह है कि आखिर क्या कारण रहे जिनसे एनडीए को इतनी बड़ी सफलता हासिल हुई? जनता ने किन मुद्दों को ध्यान में रखकर वोट किया? आइए पूरे घटनाक्रम को आसान भाषा में समझते हैं।
नीतीश कुमार के लिए सहानुभूति और ‘टाइगर ज़िंदा है’ असर
लगभग 20 साल तक बिहार का नेतृत्व करने वाले नीतीश कुमार के लिए यह चुनाव उनके अनुभव और स्थिरता की परीक्षा था। हाल के समय में उन्हें “पलटूराम” कहकर विपक्ष ने निशाना बनाया था, लेकिन उनके पारंपरिक वोटर—ईबीसी, कुर्मी और महिला वर्ग—ने इस बार भी उनका साथ नहीं छोड़ा। उनकी तबीयत और राजनीतिक दबाव की चर्चाओं ने जनता में सहानुभूति भी बढ़ाई। कई लोग मानकर चल रहे थे कि यह उनका आखिरी चुनाव हो सकता है। इस कारण लोगों ने उन्हें अनुभवी और भरोसेमंद नेता मानकर वोट किया। पटना में लगे “टाइगर अभी ज़िंदा है” वाले पोस्टरों ने साफ कर दिया कि जनता अभी भी नीतीश को बिहार की राजनीति का केंद्रीय चेहरा मानती है।
महिलाओं का जबरदस्त मतदान और कल्याणकारी योजनाओं का असर
महिला मतदाताओं ने इस बार चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाई। सरकार द्वारा 1.5 करोड़ से ज्यादा महिलाओं को 10,000 रुपये की आर्थिक मदद और अन्य योजनाओं ने उन्हें एनडीए की ओर आकर्षित किया। महिलाओं का मतदान प्रतिशत (71.78%) पुरुषों (62.98%) से काफी ज्यादा रहा। कई जिलों में महिलाओं ने 10–14% अधिक वोटिंग की। इससे यह साफहुआ कि महिलाओं ने नीतीश कुमार को सत्ता में वापस लाने में बड़ी भूमिका निभाई।
चिराग पासवान फैक्टर: एनडीए की सोशल इंजीनियरिंग हुई मजबूत
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने इस चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया। चिराग पासवान ने जहां चुनाव लड़ा, वहां 75% से ज्यादा सफलता दर दर्ज की उनकी पार्टी ने दलित और अति पिछड़े वर्ग के इलाकों में एनडीए को मजबूत किया, खासकर मध्य और पश्चिम बिहार में। इससे भाजपा-जदयू की पारंपरिक वोटबैंक में और मजबूती आई और महागठबंधन को नुकसान हुआ।
जंगल राज की वापसी का डर
प्रधानमंत्री मोदी के प्रचार में लगातार ‘जंगल राज’ का मुद्दा उठाया गया। “कट्टा, दुनाली, रंगदारी” जैसे शब्दों ने लोगों को पुराने समय की याद दिलाई, खासकर उन महिलाओं को जिन्होंने सुरक्षा को सबसे बड़ा मुद्दा माना। लोगों ने इस बार भी सुरक्षा और स्थिरता को चुनते हुए एनडीए को वोट दिया ताकि ‘जंगल राज’ की वापसी न हो।
वरिष्ठ नागरिक पेंशन और अन्य योजनाओं का बड़ा फायदा
सरकार द्वारा 1.2 करोड़ बुजुर्गों की पेंशन 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100 रुपये करना एक महत्वपूर्ण फैसला था। साथ ही महिलाओं के खातों में जमा 10,000 रुपये जैसी योजनाओं ने जनता का विश्वास और मजबूत किया।