लखनऊ में किसानों का हंगामा: कमिश्नर ऑफिस का घेराव, गाड़ी रोकी,
बोले “40 साल से इंसाफ का इंतजार है”
2 months ago Written By: Aniket Prajapati
लखनऊ में गुरुवार को किसानों का गुस्सा फूट पड़ा। हजारों की संख्या में भारतीय किसान यूनियन (अवध गुट) के किसान कमिश्नर ऑफिस पहुंच गए। किसानों ने मुख्य गेट बंद कर कमिश्नर की गाड़ी को रोक दिया, जिससे कमिश्नर घंटों तक ऑफिस में ही फंसे रहे। प्रदर्शन में महिला किसानों ने भी जमकर भागीदारी की और लाठी पटककर नारेबाजी की। वे जमीनों का वाजिब मुआवजा और दुकानों के लिए चबूतरा देने की मांग कर रही थीं।
“40 साल से संघर्ष कर रहे हैं, पर सुनवाई नहीं” संगठन के महामंत्री राम वर्मा ने बताया कि किसान 40 सालों से अपने हक के लिए लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा, “हम लोगों की जमीनें सरकार ने लीं, लेकिन न मुआवजा मिला, न चबूतरा। बार-बार अधिकारियों से गुहार लगाने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं होती। अब तो किसान भुखमरी की कगार पर हैं।” वर्मा ने आरोप लगाया कि सरकार किसानों को गुमराह कर रही है और वादे पूरे नहीं किए जा रहे हैं।
कमिश्नर की कार को रास्ता नहीं मिला प्रदर्शन के दौरान जब कमिश्नर की गाड़ी ऑफिस से बाहर निकलने लगी, तो किसानों ने गेट बंद कर कार रोक दी। करीब 15 मिनट तक कमिश्नर की गाड़ी वहीं खड़ी रही। पुलिस और अधिकारियों ने किसानों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वे अड़े रहे। अंततः सुरक्षा कर्मियों को दूसरे रास्ते से गाड़ी निकालनी पड़ी।
किसानों की जमीन गई, मुआवजा अब तक नहीं मिला राम वर्मा ने बताया कि 1980 से 1985 के बीच लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) ने कानपुर रोड पर 23 गांवों की जमीन अधिग्रहित की थी। उस समय किसानों से वादा किया गया था कि उन्हें जीवनयापन के लिए दुकानों के चबूतरे और उचित मुआवजा दिया जाएगा। लेकिन चार दशक बीत गए, आज तक वादा पूरा नहीं हुआ।
“एक जमीन, दो मुआवजे का रेट क्यों?” वर्मा ने कहा, “LDA ने किसानों के साथ खुला भेदभाव किया है। किसी को ₹1.70 से ₹3.50 प्रति वर्ग फुट मुआवजा मिला, जबकि पास में ही एक जज की जमीन का रेट ₹14 प्रति वर्ग फुट तय किया गया। जब जमीन एक है, तो मुआवजा अलग-अलग क्यों?” किसानों की मांग है कि सभी 2500 प्रभावित किसानों को ₹14 प्रति वर्ग फुट की दर से मुआवजा दिया जाए।
“सात साल से मोमबत्ती जलाकर रह रहे हैं”
महिला किसान शांति देवी ने भावुक होकर कहा, “हम 7 साल से मोमबत्ती जलाकर जी रहे हैं। न बिजली है, न राशन। पति की मौत के बाद घर चलाना मुश्किल हो गया है। चबूतरा न मिलने की वजह से कोई काम नहीं कर पाते। अब तो भीख मांगने की नौबत आ गई है।”
“किसान होकर भी जूठा धोने को मजबूर”
महिला किसान रामकुमारी ने कहा, “हमने ठान लिया है कि जब तक फैसला नहीं होगा, तब तक कमिश्नर को बाहर नहीं जाने देंगे। 40 साल से लड़ते-लड़ते थक चुके हैं। खेत होते हुए भी घरों में झाड़ू-पोंछा कर रहे हैं। किसान होकर भी हमें दूसरों के घरों में जूठा धोना पड़ रहा है।”