अंग्रेजों ने 133 साल पहले जिसे ले गए थे अपने साथ, अब अपनी मिट्टी पर लौटी उनकी छठवीं पीढ़ी,
इस गांव से है उनका नाता
1 months ago
Written By: Ashwani Tiwari
Uttar Pradesh News: इंसान चाहे दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न चला जाए, अपने वतन और पूर्वजों की धरती से उसका रिश्ता कभी नहीं टूटता। ऐसा ही एक भावुक किस्सा सामने आया है उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से, जहां नीदरलैंड में रह रहे एक परिवार के लोग 133 साल बाद अपने पूर्वजों की मिट्टी से जुड़ने लौटे। जितेंद्र छत्ता नामक शख्स अपनी पत्नी शारदा रामसुख, बेटी ऐश्वर्या और बेटे के साथ भारत आए। सबसे पहले उन्होंने अयोध्या जाकर भगवान राम लला के दर्शन किए और फिर अपने पूर्वजों के गांव बलिया पहुंचे।
1892 में अंग्रेजों ने किया था छल
जितेंद्र छत्ता छठवीं पीढ़ी से संबंध रखते हैं। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज सुंदर प्रसाद को अंग्रेजों ने 1892 में बलिया के सीयर गांव से अपने साथ ले गया था। उस समय सुंदर प्रसाद की उम्र करीब 35 साल थी। अंग्रेजों ने उन्हें महल में रहने और सोने की थाली में भोजन करने का लालच दिया। सुंदर प्रसाद के साथ उनकी पत्नी अनुरजिया बिहारी और तीन साल का बेटा भी ले जाया गया।
मजदूरी के लिए भेजा गया सूरीनाम
जितेंद्र के अनुसार, अंग्रेजों ने पहले उनके पूर्वजों को बेल्थरारोड रेलवे स्टेशन ले जाकर कोलकाता भेजा। वहां से पानी के रास्ते सूरीनाम पहुंचाया गया। वहां पहुंचने पर परिवार को पता चला कि उनके साथ धोखा हुआ है। उन्हें मजदूरी के काम में झोंक दिया गया। महल और आराम का सपना टूट गया।
नीदरलैंड में बसा परिवार
सूरीनाम में कुछ समय बिताने के बाद उन्हें नीदरलैंड भेज दिया गया। वहां पीढ़ियां गुजर गईं और परिवार पूरी तरह से बस गया। वर्तमान में जितेंद्र छत्ता डिफ्ट, साउथ हॉलैंड में मेंबर ऑफ सुपरवाइजिंग बोर्ड के पद पर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह उनकी जिंदगी का सबसे भावुक पल है जब वह अपने पूर्वजों की धरती पर लौटे हैं।
पूर्वजों की मिट्टी से जुड़ने की खुशी
बलिया आने पर हालांकि जितेंद्र और उनके परिवार को गांव में अपने कोई रिश्तेदार नहीं मिले, लेकिन उन्होंने कहा कि इस भूमि से उनका गहरा नाता है। उन्होंने माना कि पूर्वजों की आशीष से ही परिवार आगे बढ़ा है और वे हर हाल में अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहते हैं।