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अदालतें रिकवरी एजेंट की तरह काम नहीं कर सकतीं... सुप्रीम कोर्ट को क्यों करनी पड़ी ये टिप्पणी !

1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट कर दिया है कि अदालतें किसी भी पक्षकार के लिए वसूली (रिकवरी) एजेंट का काम नहीं कर सकतीं। अदालत ने इस प्रवृत्ति की कड़ी निंदा की कि दिवानी विवादों को आपराधिक मामलों में बदल दिया जाता है, खासकर जब बकाया राशि वसूलने के लिए गिरफ्तारी की धमकी का इस्तेमाल किया जाता है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि यह हालिया प्रवृत्ति बन गई है कि पक्षकार धन की वसूली के लिए आपराधिक मामले दर्ज कराते हैं, जबकि यह पूरी तरह से दिवानी विवाद होता है।

उत्तर प्रदेश का मामला सामने आया
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश से जुड़े एक आपराधिक मामले में की, जहां धन की वसूली के विवाद में एक व्यक्ति पर अपहरण का आरोप लगाया गया था। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में पुलिस और न्यायिक प्रणाली दोनों ही फंसी हुई स्थिति में रहती हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज ने बताया कि इस प्रकार की शिकायतों में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि पुलिस अक्सर दुविधा में पड़ जाती है, क्योंकि अगर वह संज्ञेय अपराध का मामला होने के बावजूद प्राथमिकी दर्ज नहीं करती तो अदालत फटकार लगाती है, और यदि दर्ज करती है तो पक्षपात का आरोप लगता है।

पुलिस को अदालत की सलाह
सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को सलाह दी कि किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले यह विवेकपूर्ण फैसला करें कि मामला दीवानी है या आपराधिक। अदालत ने चेतावनी दी कि आपराधिक कानून का इस तरह दुरुपयोग न्यायिक प्रणाली के लिए गंभीर खतरा बन रहा है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “अदालतें पक्षकारों के लिए बकाया राशि वसूलने के लिए रिकवरी एजेंट नहीं हैं। न्यायिक प्रणाली का इस प्रकार दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।”

नोडल अधिकारी की व्यवस्था का सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने नटराज को सुझाव दिया कि प्रत्येक जिले में एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाए, जो सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश हो। पुलिस ऐसे नोडल अधिकारी से परामर्श करके तय कर सके कि मामला दीवानी है या आपराधिक और उसके बाद कानून के अनुसार कार्रवाई करें। पीठ ने नटराज से कहा कि वह इस संबंध में निर्देश प्राप्त करें और दो हफ़्तों में अदालत को स्थिति से अवगत कराएं।

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