अब लेखपाल नहीं सेटेलाइट बताएगी बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का सटीक हाल,
मुआवजे की धांधली रोकेगी ये नई तकनीक
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
उत्तर प्रदेश में बाढ़ से हुए नुकसान के आकलन में अब बड़ा बदलाव होने जा रहा है। राज्य सरकार ने इसरो (ISRO) के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर की मदद से सेटेलाइट तकनीक के जरिए बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का सटीक सर्वे कराने का निर्णय लिया है। इसके तहत पहला ट्रायल इसी मानसून सीजन में शुरू होगा, जिसमें 25 जिलों की 116 तहसीलों का आकलन किया जाएगा। माना जा रहा है कि यह कदम पारंपरिक सर्वे में होने वाली गड़बड़ियों और मनमानी को रोकने के लिए उठाया गया है, ताकि किसानों और प्रभावित लोगों को सही राहत और मुआवजा मिल सके।
किसानों पर बाढ़ का असर
लगातार बारिश और नदियों के उफान से इस बार करीब 2.75 करोड़ से अधिक किसान प्रभावित हुए हैं। सेटेलाइट तस्वीरों के जरिए बाढ़ का सही दायरा और प्रभावित जमीन की वास्तविक स्थिति स्पष्ट होगी। इससे किसानों के लिए मुआवजा तय करने में पारदर्शिता आएगी और उन्हें सही हक मिल सकेगा।
पारंपरिक सर्वे की चुनौतियां
आपको बताते चलें कि पहले बाढ़ से हुए नुकसान का आकलन तहसील स्तर पर लेखपालों की रिपोर्ट पर आधारित था तथा इस प्रक्रिया में अक्सर अनियमितताओं और गलत आंकड़ों की शिकायतें सामने आती थीं। वहीं प्रभावितों को सही मुआवजा न मिल पाने की समस्या भी लंबे समय से बनी हुई थी। जिसके बाद अब सेटेलाइट डेटा के जरिए सटीक और हाई-रिजॉल्यूशन जानकारी उपलब्ध होगी, जिससे समय की बचत होगी और राहत वितरण में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकेगी।
प्रभावित क्षेत्रों की स्थिति
प्रदेश के पहाड़ी और मैदानी इलाकों में लगातार बारिश के कारण गंगा, यमुना समेत कई नदियां उफान पर हैं। वहीं प्रयागराज में गंगा-यमुना के बढ़ते जलस्तर से 2,600 घर प्रभावित हैं और 1,594 गलियां व मोहल्ले जलमग्न हो चुके हैं। प्रशासन ने राहत शिविरों की व्यवस्था की है। साथ ही वाराणसी में गंगा का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर पहुंच चुका है, जिससे कई घाट डूब गए हैं। जल पुलिस ने अलर्ट जारी किया है। वहीं मथुरा में यमुना के पानी के उतरने के बाद मकानों में दरारें और फर्श धंसने की शिकायतें आ रही हैं। जिसके कारण कई घर रहने लायक नहीं बचे, जिसके बाद लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जा रहा है।
इसरो की भूमिका
यहां ISRO का नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की हाई-रिजॉल्यूशन सैटेलाइट तस्वीरें उपलब्ध कराएगा। यह डेटा राज्य आपदा प्रबंधन विभाग को सौंपा जाएगा, जो नुकसान का सटीक आकलन करेगा। वहीं माना जा रहा है कि यह तकनीक न केवल वर्तमान बाढ़ संकट में मददगार होगी, बल्कि भविष्य की बाढ़ प्रबंधन नीतियों और राहत योजनाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।