सपा नेता आजम खान को हाई कोर्ट से बड़ी राहत,
क्वालिटी बार पर कब्जा मामले में मिली राहत
1 months ago Written By: आदित्य कुमार वर्मा
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान को क्वालिटी बार पर कब्जा करने के आरोपों वाले मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत दे दी है। जस्टिस समीर जैन की सिंगल बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुनाया, जो न्यायिक प्रक्रियाओं और राजनीतिक चर्चाओं दोनों के बीच अब नए बहस के दरवाजे खोलता दिख रहा है।
मामला और पहली एफआईआर की कहानी द्ससल क्वालिटी बार से जुड़ा विवाद 2014 के शुरुआती घटनाक्रम से जुड़ा हुआ है, जब रामपुर के सैद नगर हरदोई पट्टी पर बनी उस जमीन पर कथित तौर पर जबरन कब्जे की कोशिश की गई। यह जमीन जिला मजिस्ट्रेट के अधीन बताई जाती थी और उस पर किराये या आवंटन से जुड़ा मामला था, पर विवाद तल्ख हो गया और राजस्व निरीक्षक अंगराज सिंह ने 21 नवंबर 2019 को FIR दर्ज कराई। शुरुआती एफआईआर में आजम खान का नाम उपस्थित नहीं था; एफआईआर में आजम खान की पत्नी डॉ. तजींन फातमा, बेटे अब्दुल्ला आजम और सहकारी संघ के अध्यक्ष सैयद जाफर अली जाफरी को नामजद किया गया था।
जांच में तेजी और आजम का आरोपी बनना वहीं इस कहानी में नया मोड़ तब आया जब 2024 में एक बार फिर इस मामले की जांच शुरू की गई। जांच के दौरान परिस्थितियाँ बदलती रहीं और पुलिस ने आजम खान को भी आरोपी मानते हुए मामला दर्ज किया। गिरफ्तारी के बाद आजम खान सिटापुर जेल में बंद रहे और इस पूरे मामलों के सिलसिले में कानूनी लड़ाई छिड़ गई। MP-MLA कोर्ट में जमानत याचिका खारिज होने के बाद आजम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट से मिली राहत आपको बताते चलें कि, गत 17 मई 2025 को रामपुर की MP-MLA कोर्ट ने आजम खान की जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिससे उन्हें उच्च न्यायालय तक जाना पड़ा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले की गहनता से सुनवाई की और 21 अगस्त को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया। अब जस्टिस समीर जैन की सिंगल बेंच ने उपलब्ध सबूतों और तर्कों को परखते हुए यह मान लिया कि वर्तमान स्थिति में आजम को जेल में रखना न्यायसंगत नहीं है और इसलिए जमानत मंजूर कर दी गई।
अभियोजन बनाम बचाव: देरी और सबूतों की जंग गौरतलब हो कि, अदालत में बचाव पक्ष ने विशेष तौर पर एफआईआर दर्ज करने में पाई गई पांच साल की देरी को प्रमुख आधार बनाया। यह देरी, वकीलों के अनुसार, मामले की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है और दलीलें राजनीतिक प्रेरणा से प्रेरित भी हो सकती हैं। दूसरी ओर अभियोजन पक्ष ने यह तर्क दिया कि आरोप गंभीर हैं और सार्वजनिक संपत्ति पर अवैध कब्जे जैसे आरोपों की नज़रंदाज़ नहीं की जा सकती। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए निर्णय दिया।
राजनीतिक और सामाजिक निहितार्थ वहीं अब माना जा रहा है कि इस फैसले का असर सिर्फ़ कानूनी नहीं रहेगा; राजनैतिक परिदृश्य में भी इसके दूरगामी निहितार्थ होंगे। आजम खान, जो दशकों से रामपुर और आसपास के इलाके में प्रभाव वाले राजनीतिक चेहरे रहे हैं, उनकी जमानत से स्थानीय राजनीति में हलचल और पार्टियों की रणनीतियों पर असर पड़ेगा। विरोधी दल इसे न्यायिक कटौती कहकर आलोचना कर सकते हैं, जबकि समर्थक इसे राजनीतिक निशानेबाज़ी से बचाव और राहत के रूप में प्रस्तुत करेंगे।
आगे की राह- जांच और कानूनी प्रक्रिया हाईकोर्ट की जमानत आजम खान की निजी स्वतंत्रता की झलक देती है, परंतु आरोपों की पृष्ठभूमि में चल रही जांच और मुकदमे की प्रक्रिया अभी जारी रहेगी। अभियोजन के पास अभी भी तथ्यों को पुष्ट करने और अदालत में प्रस्तुत करने का समय है, और यदि नयी सबूतों का संकलन होता है तो कानूनी पाठ आगे बढ़ेगा। अदालत ने वर्तमान सबूतों के आधार पर जमानत दी है, इसका अर्थ यह नहीं कि मामले का अन्त हुआ है; यह केवल एक न्यायिक कदम है जो आगे की सुनवाई तक आजम को कानूनी रोक-टोक से मुक्त करता है।