गोसाईगंज जेल में गायत्री प्रजापति पर जानलेवा हमले ने ताजा की जेलों में पुराने खून-खराबे की याद,
मुन्ना बजरंगी सहित कई कैदियों के खून से रंगी है यूपी की ये जेलें
24 days ago Written By: संदीप शुक्ला
उत्तर प्रदेश की जेलें अपराधियों के लिए केवल सुरक्षित ठिकाना नहीं बल्कि पूर्व में खून-खराबे और सनसनीखेज वारदातों का अड्डा भी बनती रही हैं। सलाखों के पीछे कभी हत्या, तो कभी गोलियों की गूंज- ऐसा लगता है मानो जेल के भीतर ही अपराध की दूसरी दुनिया पल रही हो। यहां मंगलवार को लखनऊ की गोसाईगंज जेल में समाजवादी पार्टी के पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति पर हुआ जानलेवा हमला भी उसी काली परंपरा का ताजा अध्याय नजर आता है। इस वारदात ने एक बार फिर उस दर्दनाक इतिहास को याद दिला दिया, जब माफिया मुन्ना बजरंगी से लेकर कई कुख्यात कैदी जेल की चारदीवारी के भीतर ही मौत के शिकार हो चुके हैं। हालांकि यूपी की जेलों में इस तारह के वाकये पहली बार नहीं हैं। आइये ऐसे ही कुछ प्रमुख वाकयों पर नजर डालते हैं...
गायत्री प्रजापति पर हमला और बागपत जेल की याद यहां मंगलवार को पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति पर जेल के भीतर सफाईकर्मी विश्वास ने हमला किया। यह हमला अचानक था, लेकिन इस घटना ने 2018 की उस भयावह सुबह को याद दिला दिया, जब बागपत जिला जेल में माफिया मुन्ना बजरंगी को गोलियों की बौछार से मौत के घाट उतार दिया गया था। ठीक उसी तरह जैसे उस वक्त सुरक्षा पर सवाल खड़े हुए थे, वैसे ही अब गोसाईगंज जेल की सुरक्षा कटघरे में आ गई है।
डासना जेल की रहस्यमयी मौतें फिर याद आईं गोसाईगंज की वारदात ने 2008 और 2009 की डासना जेल की घटनाओं को भी ताजा कर दिया। जब कविता हत्याकांड के आरोपी रविन्द्र प्रधान की संदिग्ध मौत हुई थी और उसके अगले ही साल बस विस्फोट कांड के आरोपी शकील अहमद की हत्या कर दी गई थी। दोनों घटनाओं ने तब जेल की सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठाए थे और अब गायत्री प्रजापति पर हुआ हमला वही जख्म कुरेद रहा है।
लखनऊ और मेरठ की गोलीबारी की गूंज यह हमला 2011 की लखनऊ जेल की उस घटना की भी याद दिलाता है, जब सीएमओ हत्याकांड के आरोपी वाईएस सचान की संदिग्ध हालात में मौत हुई थी। इसी कड़ी में 2012 का मेरठ जेल कांड भी सामने आता है, जब तलाशी के दौरान हुए विवाद में फायरिंग हुई और दो बंदियों की जान चली गई। गोसाईगंज की घटना ने उन सभी वारदातों को मानो फिर से जिंदा कर दिया है।
गाजीपुर, मथुरा और सहारनपुर की परछाइयाँ गोसाईगंज जेल में हुआ हमला उस खून-खराबे को भी याद दिलाता है, जब 2014 में गाजीपुर जेल में बंदियों और प्रशासन के बीच संघर्ष में बंदी विश्वनाथ प्रजापति मारा गया था। 2015 में मथुरा जेल की गोलीबारी में पिंटू सोलंकी और राजेश टोटा की जान गई थी, और 2016 में सहारनपुर जेल में कैदी सुक्खा की गला रेत कर हत्या ने सबको दहला दिया था। आज की घटना मानो इन सबकी परछाईं बनकर सामने आई है।
वाराणसी जेल से हुई थी शुरुआत अगर पीछे झांके तो यह सिलसिला करीब डेढ़ दशक पहले वाराणसी जेल से शुरू हुआ था। जब माफिया मुन्ना बजरंगी के शूटरों ने जेल के भीतर पार्षद वंशी यादव की गोली मारकर हत्या कर दी थी। यह पहली बार था जब जेल की चारदीवारी के भीतर हत्या की खबर बाहर आई थी। गोसाईगंज जेल की ताजा घटना ने उसी भयावह शुरुआत को फिर से याद करा दिया।
सवालों में घिरी जेल सुरक्षा हर बार की तरह इस बार भी प्रशासन सुरक्षा बढ़ाने की बात कर रहा है। लेकिन सच यह है कि जब-जब जेल में खून बहा है, तब-तब कार्रवाई का शोर मचा और कुछ दिनों बाद सब ठंडा पड़ गया। गायत्री प्रजापति पर हुआ हमला भी उसी ढर्रे को दोहरा रहा है। इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि यूपी की जेलें आज भी भगवान भरोसे चल रही हैं।