बिंदी की नगरी कहा जाता है यूपी का ये शहर…देश-विदेश तक फैला है कारोबार,
यहीं से आता है हर महिला के माथे का श्रृंगार
1 months ago Written By: आदित्य कुमार वर्मा
उत्तर प्रदेश का नाम आते ही आपके ज़ेहन में अलग-अलग शहरों की अपनी-अपनी पहचान उभर आती है- कहीं का खाना मशहूर है, कहीं के कपड़े, कहीं के गहने और कहीं के बर्तन। लेकिन आज हम आपको उस शहर के बारे में बता रहे हैं, जिसे देशभर में “बिंदी सिटी” कहा जाता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं बलिया जनपद के मनियर शहर की। उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर बसा यह जिला भारतीय महिलाओं के श्रृंगार की सबसे अहम पहचान- बिंदी के लिए मशहूर है। बलिया के इस शहर में बिंदी बनाने का कारोबार सदियों पुराना है और आज भी यहां की बिंदी पूरे देश में सप्लाई की जाती है।
बिंदी से चमका बलिया का नाम बलिया जिले के मनियार विकास खंड में बिंदी बनाने का कुटीर और लघु उद्योग देखने को मिलता है। यहां की बिंदी सिर्फ सजावटी चीज़ नहीं, बल्कि महिलाओं के श्रृंगार और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा मानी जाती है। यही वजह है कि बलिया की बिंदी को ब्रांड की तरह पहचान मिल चुकी है।
रोजगार से जुड़ी हजारों जिंदगियां इस उद्योग से जिले के करीब 16 हजार से अधिक परिवार जुड़े हुए हैं। आंकड़ों के मुताबिक, बलिया में बिंदी का सालाना कारोबार 25 से 30 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। जिले के लगभग 150 गांवों में एक लाख से ज्यादा आबादी बिंदी बनाने के काम से सीधे तौर पर जुड़ी है।
योगी सरकार की मदद से नई उड़ान उत्तर प्रदेश सरकार ने बलिया की बिंदी को ODOP (वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट) योजना में शामिल किया है, जिससे स्थानीय कारीगरों और छोटे कारोबारियों को बढ़ावा मिल रहा है। इसके साथ ही बिंदी उद्योग से जुड़े लोगों को बाज़ार और आधुनिक तकनीक तक पहुंचाने की कोशिश हो रही है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान बलिया नगर महर्षि भृगु की धरती माना जाता है। यहां प्रमुख रूप से हिंदी और भोजपुरी भाषाएं बोली जाती हैं। कभी यह गाजीपुर जिले का हिस्सा था और इसे राजा बलि की धरती भी कहा जाता है। यही नहीं, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी बलिया ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में बड़ी भूमिका निभाई थी। आज बलिया न सिर्फ अपनी ऐतिहासिक धरोहर बल्कि बिंदी उद्योग की वजह से भी देशभर में जाना जाता है। यहां की बिंदियां हर उम्र और हर वर्ग की महिलाओं के श्रृंगार को चार चांद लगाती हैं और साथ ही हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी का साधन भी बनी हुई हैं।