एक ओर चिता से उठती आग तो दूसरी ओर चिता की राख से मसाने की होली खेलते लोग,
बाबा विश्वनाथ की नगरी में होली का विहंगम नजारा
1 months ago
Written By: Special Desk
एक ओर चिता से उठता धुंआ तो दूसरी ओर उसी चिता की राख़ से होली खेलते लोग, ये नजारा बताता है कि काशी में जीवन मरण सब एक है। यहां श्मशान में होली का उत्सव, ये दिखाता है कि काशी के लोगों के लिए मृत्यु भी कोई बड़ी चीज नहीं है। ऐसा हो भी क्यों ना, आखिर नगरी भी बाबा विश्वनाथ की है। जो खुद जीवन मरण के चक्र से परे हैं। काशीवासियों के लिए मृत्यु भी सामान्य है। ये एकमात्र ऐसा शहर है जो कभी सोता नहीं है, हमेशा आनंद में रहता है। यहां की परंपराएं भी अनोखी हैं। इन्हीं परंपराओं में से एक मसाने की होली सोमवार को यहां खेली गई।
यह अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि काशी की सड़कों पर अड़भंगी बाबा शिव के गणों भूत-प्रेत-पिशाच, गन्धर्व, किन्नर ,नाग सभी एक साथ माता पार्वती का गौना करवाने गौना की शिव बारात में निकल पड़े हों और लग रहा हो कि साक्षात शिव भी मस्तमौले रूप में सबसे आगे माता को लिवाने के लिए जा रहे हों।
ऐसा आभास उस समय प्रतीत हुआ जब हरिश्चंद्रघाट पर खेली जाने वाली मसाने की होली के पूर्व परम्परगत रूप में बाबा कीनाराम स्थल रवीन्द्रपुरी से हरिश्चंद्रघाट तक शोभायात्रा निकाली गई।
चिता भस्म पूजन करने के बाद शुरू होती है मसाने की होली
उत्सव प्रेमी काशी की मस्ती का साक्षात रूप इस कदर असर दिखा रहा था लगभग दो किमी की दूरी तक पहुंचने में तीन घण्टे लग गए। गाजेबाजे के साथ शुरू हुई शोभायात्रा में हर-हर महादेव व खेले मसाने में होली गीत और उसपर नृत्य के विविध रूप बखूबी दिखाई पड़े। शोभायात्रा में शामिल प्रतिरूपों के करतब व नृत्य इतने लुभावने थे कि देशी- विदेशी भक्त सब उनके साथ शामिल होकर नृत्य भंगिमा में आ जा रहे थे।

कोई नरमुंड का प्रतिरूप धारण किए था तो कोई तो जिंदा सांप मुंह मे दबाए नृत्य करके लुभा रहा था। शोभायात्रा विजया चौराहा सोनारपुरा होते हरिश्चंद्रघाट तक जब पहुंची तो वहां पहले से खड़े शिव भक्तों ने स्वागत किया। शोभायात्रा का अवलोकन करने के लिए सड़क के दोनों किनारों पर अपार जनसमूह खड़ा था।

एक चुटकी राख के लिए तरसते हैं लोग
जहां लोग चिता, भस्म, श्मशान से दूर भागते हैं, वहीं काशी में होली खेलने आए लोग एक चुटकी भस्म लेने की जुगत में लगे रहते हैं। बताया जा रहा है कि इस होली को देखने के लिए केवल विदेशों से 5 लाख सैलानी पहुंचे हैं।
क्यों मनाई जाती है मसाने की होली
मान्यता है कि जब महादेव रंगभरी एकादशी के दिन पार्वती जी को ब्याहकर काशी लाए थे, तो उस दिन सभी ने उनके साथ गुलाल से होली खेली थी लेकिन इस खुशी में भूत-प्रेत, अघोरी, साधु और कई अन्य जीव-जंतु शामिल नहीं हो सके थे। इसलिए, रंगभरी एकादशी के अगले दिन महादेव ने इन लोगों के साथ मसान की होली खेली।

इस दिन उन्होंने महादेव के साथ चिता की भस्म से होली खेलने की परंपरा शुरू की थी। तभी से यह परंपरा चली आ रही है और आज भी इसे शिवजी की भक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस होली से जुड़ी एक और धार्मिक मान्यता है, जिसके अनुसार भोलेनाथ ने यमराज को इस दिन पराजित किया था जिसके बाद चीता की राख से होली खेली थी।