2 महीने तक SHO समेत 7 हैवानों ने नाबालिक के साथ किया गैंगरेप, पुलिस ने पलटा केस…
23 साल बाद आया इंसाफ, कोर्ट ने सुनाई 20 साल की सजा
9 days ago Written By: Ashwani Tiwari
Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में 2002 में हुई एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया था। 13 साल की इस बच्ची को दो महीने तक बेहोश करके दरिंदों ने बार-बार अपनी हवस का शिकार बनाया। मामला सिर्फ कुछ अपराधियों का नहीं था, बल्कि इसमें पुलिसवालों तक की मिलीभगत सामने आई। जब पीड़िता न्याय की आस में थाने पहुंची, तो वहीं उसे झूठे मामलों में फंसा दिया गया। लेकिन 23 साल तक संघर्ष करने के बाद आखिरकार न्याय की जीत हुई। एडीजे फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम (अंजू राजपूत) ने सात दोषियों को उम्रकैद और 50-60 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। अदालत ने आदेश दिया कि जुर्माने की 75 प्रतिशत राशि पीड़िता को दी जाए।
2002 में हुआ था दर्दनाक अपराध यह मामला 30 अक्टूबर 2002 का है। अलीगढ़ के खैर क्षेत्र के एक गांव की 13 वर्षीय अनुसूचित जाति की नाबालिग किशोरी खेत से लौट रही थी, तभी गांव के तीन लोग रामेश्वर, प्रकाश और साहब सिंह ने उसका अपहरण कर लिया। आरोपी उसे गाड़ी में डालकर ले गए, जिसे बसपा नेता राकेश मौर्या चला रहा था। गाड़ी में सेवानिवृत्त एसएचओ रामलाल वर्मा भी मौजूद था। पीड़िता को एक गोदाम में बंद कर कई दिनों तक नशीला पदार्थ देकर बेहोश रखा गया और बार-बार उसका रेप किया गया।
दो महीने बाद सड़क पर फेंकी गई पीड़िता लगातार अत्याचार झेलने के बाद पीड़िता को दिसंबर 2002 में टप्पल थाना क्षेत्र के हामिदपुर गांव के पास फेंक दिया गया, जहां ग्रामीणों ने उसकी मदद की। जांच में पता चला कि इस गैंगरेप में सात लोग शामिल थे रामेश्वर, प्रकाश, खेमचंद्र, जयप्रकाश, सेवानिवृत्त एसएचओ रामलाल वर्मा, उसका बेटा बॉबी और तत्कालीन खैर थाने के एसएचओ पुत्तूलाल प्रभाकर।
पुलिस ने निर्दोषों को फंसाया, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दखल पीड़िता के पिता ने खैर थाने में मुकदमा दर्ज कराया, लेकिन तत्कालीन एसएचओ प्रभाकर ने असली आरोपियों के नाम हटा दिए और निर्दोष ग्रामीणों बोना और पप्पू उर्फ विजेंद्र को झूठा फंसा दिया। न्याय के लिए संघर्ष करते हुए पीड़िता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 17 फरवरी 2003 को कोर्ट के आदेश पर उसका बयान दर्ज हुआ। मामला राजनीतिक रूप से संवेदनशील था क्योंकि इसमें बसपा नेता का नाम आया था। 2002 से 2007 तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। बाद में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से जांच सीबीसीआईडी को सौंपी गई, जिसने तीन चरणों में जांच कर सात आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की।
कोर्ट ने सुनाया सख्त फैसला 15 अक्टूबर 2025 को एडीजे फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम (अंजू राजपूत) ने सातों आरोपियों को दोषी करार दिया। अदालत ने 20 साल के कठोर कारावास और जुर्माने की सजा सुनाते हुए कहा कि जुर्माने का 75 प्रतिशत हिस्सा पीड़िता को दिया जाए। 23 साल के लंबे संघर्ष के बाद यह फैसला न्याय और साहस की मिसाल बन गया।