फर्जी धर्म परिवर्तन, फर्जी निकाह…
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बालिग जोड़े की शादी को किया अमान्य
1 months ago Written By: Ashwani Tiwari
Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में फर्जी धर्म परिवर्तन प्रमाणपत्र के आधार पर हुई शादी को अवैध करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि बिना वास्तविक धर्म परिवर्तन के भी विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी का पंजीकरण किया जा सकता है। इस मामले में कोर्ट ने महिला को शादी के पंजीकरण तक प्रयागराज के नारी संरक्षण गृह में रखने का आदेश दिया। जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की पीठ ने याचिकाकर्ता जोड़े को अलग करने का निर्देश दिया और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन को आवश्यक कदम उठाने को कहा।
फर्जी धर्म परिवर्तन प्रमाणपत्र सामने आया मोहम्मद बिन कासिम उर्फ अकबर और जैनब परवीन उर्फ चंद्र कांता की याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया कि चंद्र कांता ने 22 फरवरी 2025 को इस्लाम स्वीकार किया और खानकाह आलिया अरीफिया, कौशांबी द्वारा जारी फर्जी धर्म परिवर्तन प्रमाणपत्र के आधार पर 26 मई 2025 को अकबर के साथ निकाह किया। हालांकि, सरकारी वकील और जामिया आलिया अरीफिया के सचिव ने पुष्टि की कि ऐसा कोई प्रमाणपत्र जारी नहीं किया गया। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि फर्जी दस्तावेजों के कारण धर्म परिवर्तन और उस पर आधारित निकाह दोनों अवैध हैं।
कोर्ट का आदेश और विशेष विवाह अधिनियम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम कानून के तहत निकाह केवल इस्लाम मानने वालों के बीच वैध हो सकता है। इसलिए इस शादी को अमान्य घोषित करते हुए कोर्ट ने दोनों बालिगों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत प्रयागराज में शादी पंजीकृत करने का निर्देश दिया। चंद्र कांता के परिवार के साथ न जाने के इनकार के कारण उसे नारी संरक्षण गृह में रखने का आदेश भी दिया गया।
वकील और प्रशासन को निर्देश कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील को भविष्य में बिना सत्यापन के फर्जी दस्तावेज न दाखिल करने की चेतावनी दी और 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने प्रशासन को दो घंटे के भीतर जिला प्रोबेशन अधिकारी, डीएम प्रयागराज और पुलिस कमिश्नर को सूचित करने और नारी संरक्षण गृह में सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिए।
कोर्ट का तर्क कोर्ट ने कहा कि संविधान दो बालिगों को अपनी मर्जी से शादी करने का अधिकार देता है, लेकिन फर्जी दस्तावेजों के आधार पर की गई शादी वैध नहीं हो सकती। विशेष विवाह अधिनियम के तहत बिना धर्म परिवर्तन के अंतर-धर्मी विवाह संभव हैं, और याचिकाकर्ता इस विकल्प का उपयोग कर सकते हैं।