ईसाई बनने के बाद नहीं मिलेगा अनुसूचित जाति का लाभ,
धर्मांतरण पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला…
8 days ago Written By: Ashwani Tiwari
Allahabad High Court News: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने धर्मांतरण को लेकर एक महत्वपूर्ण और दूरगामी असर वाला फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ कहा कि कोई भी व्यक्ति यदि धर्मांतरण कर ईसाई धर्म स्वीकार करता है, तो उसे अनुसूचित जाति (SC) से जुड़े लाभ नहीं मिल सकते। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि धर्म बदलने के बाद भी SC दर्जा बनाए रखना संविधान के साथ धोखाधड़ी जैसा है। मंगलवार को दिए गए इस फैसले में हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन को सख्ती से निर्देश दिया है कि धर्मांतरण के बाद भी SC लाभ लेने की कोशिश करने वालों पर तुरंत कार्रवाई की जाए। यह निर्णय पूरे राज्य के प्रशासनिक तंत्र को प्रभावित करेगा।
ईसाई धर्म अपनाते ही बंद हों सभी सुविधाएं: कोर्ट कोर्ट ने कहा कि जैसे ही कोई व्यक्ति ईसाई धर्म स्वीकार करता है, उसे अनुसूचित जाति से संबंधित मिलने वाली सभी सुविधाएं तुरंत बंद हो जानी चाहिए। हाई कोर्ट ने अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देश दिया कि वह यह सुनिश्चित करें कि अल्पसंख्यक दर्जा और अनुसूचित जाति के दर्जे के बीच का फर्क सख्ती से लागू हो। किसी भी स्थिति में दोनों तरह के लाभ एक व्यक्ति को एक साथ नहीं मिल सकते।
जिलाधिकारियों को चार महीने में कार्रवाई के निर्देश फैसले में कोर्ट ने प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को आदेश दिया कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में ऐसे मामलों की पहचान करें, जहां धर्म बदलने के बावजूद SC लाभ लिया जा रहा है। कोर्ट ने इसके लिए चार महीने की समयसीमा तय की है। इस अवधि में जिलाधिकारी जांच कर कार्रवाई सुनिश्चित करेंगे।
जितेंद्र साहनी की याचिका खारिज यह फैसला जस्टिस प्रवीण कुमार गिरि की अदालत ने सुनाया। कोर्ट ने जितेंद्र साहनी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने धर्म परिवर्तन के आरोप में एसीजेएम कोर्ट में चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी। उन पर हिंदू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने और वैमनस्य फैलाने का आरोप है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि साहनी का हलफनामा विरोधाभासी है। हलफनामे में उन्होंने खुद को हिंदू बताया, जबकि वे पहले ही ईसाई धर्म अपना चुके हैं। धर्मांतरण से पहले वे अनुसूचित जाति समुदाय से थे, लेकिन हलफनामे में उन्होंने फिर से अपना धर्म हिंदू लिख दिया। इसी तथ्य ने कोर्ट का ध्यान खींचा और याचिका खारिज कर दी गई।