मेरठ में रामायणकालीन मंदिर पर कब्जे की जंग, मंदोदरी से जुड़ी आस्था…
पुलिस निगरानी में होगा प्रसाद वितरण
1 months ago
Written By: Ashwani Tiwari
Uttar Pradesh News: मेरठ के सदर इलाके में स्थित ऐतिहासिक बाबा बिल्वेश्वर नाथ मंदिर इन दिनों चर्चा का केंद्र बना हुआ है। रामायणकालीन धरोहर माने जाने वाले इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि लंकापति रावण की पत्नी और शिवभक्त मंदोदरी यहां पूजा-अर्चना किया करती थीं। यही कारण है कि मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अपार है। लेकिन बीते कुछ वर्षों से इस मंदिर पर कब्जे और आयोजनों को लेकर विवाद गहराता चला गया है। हालात इस कदर बिगड़े कि प्रशासन और पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा और मंदिर परिसर के बाहर फोर्स तैनात करनी पड़ी।
मंदिर प्रबंधन पर दो पक्ष आमने-सामने
मंदिर की व्यवस्था और संचालन को लेकर पुजारी और समाज के लोग आमने-सामने हैं। पंडित शास्त्री गणेश ज्योतिषी का कहना है कि उनके पूर्वज पीढ़ियों से पूजा-पाठ करते आ रहे हैं, इसलिए मंदिर संचालन की जिम्मेदारी पुजारियों की होनी चाहिए। वहीं, गणेश अग्रवाल और पवन गर्ग का तर्क है कि मंदिर समाज का है और यहां होने वाले आयोजन दानदाताओं के सहयोग से संपन्न होते हैं। उनके अनुसार, पुजारियों का काम पूजा तक सीमित होना चाहिए, न कि चंदा और व्यवस्थाओं पर कब्जा करना।
बलदेव बाबा की छठ महोत्सव पर बढ़ा तनाव
29 अगस्त को होने वाले बलदेव बाबा की छठ महोत्सव को लेकर विवाद और बढ़ गया। प्रशासन को आशंका थी कि प्रसाद वितरण के दौरान हालात बिगड़ सकते हैं। इसी वजह से पुलिस बल की तैनाती की गई। सीओ कैंट नवीन शुक्ला और एसडीएम ने बताया कि दोनों पक्षों के बीच प्रसाद वितरण पर समझौता हो गया है, लेकिन फिर भी सुरक्षा के मद्देनज़र पुलिस मौजूद रहेगी।
रामायणकालीन महत्व और मंदिर की कहानी
इतिहासकारों के अनुसार मेरठ (जिसे पहले मयराष्ट्र कहा जाता था) में दानवों का राजा मय का किला हुआ करता था। उसकी पुत्री मंदोदरी यहां शिव की पूजा करने आती थीं। कथाओं के मुताबिक, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया और उनका विवाह लंकापति रावण से हुआ। इसीलिए मेरठ को रावण की ससुराल कहा जाता है।
मराठा काल और मंदिर की विशेषताएं
मंदिर का जीर्णोद्धार मराठों के समय हुआ। बिल्व वृक्षों से घिरे इस मंदिर का नाम बाबा बिल्वेश्वर नाथ पड़ा। यहां का धातु का स्वयंभू शिवलिंग भक्तों की आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि लगातार 40 दिन दीपक जलाने पर मनोकामना पूरी होती है। मंदिर का पीतल का घंटा भी खास है, जिसकी आवाज़ सात अलग-अलग सुरों में गूंजती है।
धरोहर बचाने की जिम्मेदारी
आज यह मंदिर न सिर्फ आस्था, बल्कि इतिहास और संस्कृति का प्रतीक है। सावन और शिवरात्रि जैसे अवसरों पर हजारों श्रद्धालु यहां जलाभिषेक के लिए आते हैं। लेकिन मंदिर पर कब्जे और प्रबंधन को लेकर चल रहा विवाद भक्तों की आस्था को ठेस पहुंचा रहा है। प्रशासन का कहना है कि शांति और परंपरा को बनाए रखना पहली प्राथमिकता है। यह धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहे, इसके लिए समाज, पुजारी और प्रशासन सभी को मिलकर जिम्मेदारी निभानी होगी