करोड़ों का कारोबार छोड़ बागपत के हर्षित जैन ने अपनाया वैराग्य,
तीन युवाओं ने ली दीक्षा
8 days ago Written By: Ashwani Tiwari
Uttar Pradesh News: बागपत से आज एक ऐसी प्रेरणादायक खबर सामने आई है, जिसने सभी को जीवन के असली अर्थ और वैराग्य की राह पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया। आधुनिक जीवन की सुविधाएं, करोड़ों का कपड़ों का कारोबार और उज्ज्वल भविष्य यह सब पीछे छोड़कर 30 वर्षीय हर्षित जैन ने आध्यात्मिक मार्ग चुन लिया है। कोरोना महामारी के दौरान जीवन की नश्वरता को नजदीक से महसूस करने के बाद हर्षित ने दीक्षा लेने का निर्णय लिया। बागपत के बामनौली जैन मंदिर में हुए भव्य तिलक समारोह में हर्षित के साथ दो अन्य युवाओं ने भी परिवार और मोह-माया छोड़कर संयम के जीवन को अपनाया। यह फैसला उनके आंतरिक बदलाव, प्रभु भक्ति और संसार के प्रति वैराग्य का जीवंत उदाहरण है।
भव्य तिलक समारोह में तीन युवाओं ने त्यागा सांसारिक जीवन दोघट कस्बे के रहने वाले हर्षित जैन ने करोड़ों रुपये का कपड़ों का सफल व्यापार छोड़कर संयम और साधना के जीवन को आधार बना लिया है। उनके साथ उत्तराखंड के छात्र संभव जैन और हरियाणा के श्रेयस जैन ने भी दीक्षा लेकर सांसारिक जीवन का त्याग कर दिया। बामनौली गांव के जैन मंदिर में उनके तिलक समारोह का आयोजन बड़े धूमधाम से हुआ, जिसमें जैन समाज के अनेक गणमान्य लोग और बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं शामिल हुईं। पूरे कार्यक्रम में श्रद्धा, भावुकता और आध्यात्मिक उत्साह देखने को मिला।
परिवार से मिली धार्मिक शिक्षा, सफलता के बाद भी मन रहा अध्यात्म की ओर हर्षित जैन अपने परिवार में छोटे बेटे हैं। उनके पिता सुरेश जैन दिल्ली में विद्युत उपकरणों के बड़े व्यापारी हैं, जबकि माता सविता जैन गृहणी हैं। बड़े भाई डॉक्टर संयम जैन दिल्ली के जैन अस्पताल में कार्यरत हैं। हर्षित ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बड़ौत से और इंजीनियरिंग गाजियाबाद से पूरी की। इसके बाद उन्होंने चांदनी चौक में कपड़ों का कारोबार शुरू किया और कम उम्र में ही आर्थिक रूप से मजबूत हो गए।
कोरोना काल ने बदला जीवन, जागा वैराग्य का भाव हर्षित बताते हैं कि कोविड महामारी ने उनके मन पर गहरी छाप छोड़ी। लोगों में दूरी, अपने ही परिवार के सदस्यों का एक-दूसरे के पास आने से घबराना और हर तरफ भय का माहौल इन सबने उन्हें संसार की नश्वरता का एहसास करवाया। उन्होंने कहा, कोरोना ने दिखा दिया कि इस दुनिया में कोई स्थायी नहीं है। अकेले आए हैं और अकेले ही जाएंगे। यही सोच मेरे वैराग्य का आधार बनी। गुरुदेव की प्रेरणा से उन्होंने मोह-माया त्यागकर संयम और साधना की राह अपना ली।