बिहार चुनाव 2025: यूपी नेताओं का अभियान और योगी आदित्यनाथ की दबदबा,
विस्तार से जानिए...
1 months ago
Written By: Aniket Prajapati
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए ने प्रचंड जीत दर्ज की है और इस जीत में यूपी के नेता खास भूमिका में रहे। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बिहार में कुल 31 रैलियां और सभाएं कीं, जिनमें उनके समर्थन वाले 31 उम्मीदवारों में से 27 ने जीत हासिल की योगी का स्ट्राइक रेट लगभग 87% रहा। वहीं समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने 22 रैलियां कीं, पर उनके केवल 2 समर्थित उम्मीदवार ही जीत सके यानी उनका स्ट्राइक रेट मात्र 9% रहा। बसपा प्रमुख मायावती ने कैमूर जिले की भभुआ सीट पर प्रचार किया; उनके 5 प्रत्याशियों में से सिर्फ एक ही जीत पाया। अन्य यूपी नेताओं चंद्रशेखर आजाद, स्वामी प्रसाद मौर्य और सुभासपा के नेता ने भी प्रचार किया, पर उनके उम्मीदवार जमानत तक बचा नहीं पाए।
योगी की रैलियों ने बदल दी चुनावी तस्वीर
सीएम योगी आदित्यनाथ के भाषणों और रैलियों ने चुनावी परिस्थितियों को अहम रूप से प्रभावित किया। उनके प्रचार में उन्होंने महागठबंधन पर तीखा हमला किया और राहुल गांधी, अखिलेश यादव व तेजस्वी यादव की तुलना ‘अप्पू, पप्पू और टप्पू’ नामक तीन बंदरों से कर दी। यह विवाद बड़ा बन गया और मीडिया में शासन-व्यवस्था, रोजगार और विकास जैसे मुद्दे पीछे रह गए। योगी ने भगवान राम, कृष्ण और मां सीता के नाम पर भी भावनात्मक अपील कराई। उनके साथ भाजपा के सहयोगी दलों जदयू, लोजपा, हम और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उम्मीदवारों का भी सक्रिय समर्थन रहा।
जहां एक साथ रैलियां हुईं — क्या नतीजा रहा?
कई सीटों पर योगी और अखिलेश दोनों ने रैलियां कीं। उन तीन प्रमुख सीटों का नतीजा इस प्रकार रहा: सीवान (रघुनाथपुर) — राजद जीती, पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) भाजपा जीती, मधुबनी (बिस्फी) राजद जीती।
अखिलेश का कमजोर प्रदर्शन और अन्य असर
अखिलेश यादव का कम सफल प्रदर्शन साफ दिखा—उनकी 22 रैलियों में सिर्फ 2 जीत मिली। वहीं खेसारी लाल यादव तक की वजह से भी कुछ जगहों पर मदद नहीं मिल पाई। मायावती का भी सीमित प्रभाव रहा। अन्य छोटे और क्षेत्रीय नेताओं के प्रचार का असर बहुत कम रहा और कई उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा। नतीजतन बिहार में एनडीए की मजबूत जीत के साथ यूपी के नेताओं की साख और रणनीतियों पर गहरी राजनीतिक बहस चल रही है — खासकर योगी की तेज रणनीति और विपक्ष की कमजोर कमान को लेकर।