चंडीगढ़ बिल पर सियासी तूफान:
केंद्र ने शीतकालीन सत्र में पेश करने से किया इन्कार
1 months ago Written By: Aniket prajapati
पंजाब की सियासत इन दिनों चंडीगढ़ से जुड़े एक संभावित संविधान संशोधन बिल की चर्चा से गरमा उठी है। शिरोमणि अकाली दल, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस समेत कई दलों ने इस बिल का कड़ा विरोध जताया और आरोप लगाया कि इसके जरिए केंद्र चंडीगढ़ का नियंत्रण मजबूत करना चाहता है। इस पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि शीतकालीन सत्र में इस बिल को लाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने भी पार्टी को सलाह दी कि फिलहाल यह बिल लाने का सही समय नहीं है क्योंकि पंजाबियों का चंडीगढ़ के साथ भावनात्मक लगाव बहुत गहरा है।
नोट में क्या तर्क दिए गए थे सूत्रों के अनुसार उस नोट में कहा गया था कि चंडीगढ़ के लिए नए कानून बनाने का अधिकार फिलहाल केवल संसद के पास है और 1966 के बाद से उस दिशा में विशेष कानून नहीं बनाए गए। प्रस्ताव में यह सुझाव था कि अगर चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 के दायरे में लाया जाए तो राष्ट्रपति आदेश के ज़रिये छोटे-मोटे क़ानूनी बदलाव जल्दी किए जा सकेंगे, जैसा अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के साथ संभव है। इससे प्रशासनिक कामकाज तेज़ और सरल हो जाएगा। नोट में यह भी स्पष्ट किया गया कि इससे चंडीगढ़ की मूल स्थिति नहीं बदलेगी — यह पंजाब और हरियाणा की साझा राजधानी ही रहेगा और प्रशासनिक या विभागीय संरचना पर कोई असर नहीं होगा।
राजनीतिक विरोध और समय की नाजुकता पंजाब में अधिकांश लोगों की राय रही है कि चंडीगढ़ पंजाब को ही दिया जाना चाहिए। भाजपा के नेताओं ने कहा कि 2020-21 के विवादित कृषि कानूनों के बाद सिख समुदाय में केंद्र के प्रति अविश्वास बाकी है, इसलिए यह फैसला भावनात्मक और संवेदनशील माहौल में गलत संदेश जाएगा। पार्टी के राज्य नेतृत्व ने भी माना कि यह बिल जनता को समझाने में असफल रहेगा। इसी कारण केंद्र ने इसे शीतकालीन सत्र में लाने का इरादा ठुकरा दिया।
आगे क्या होगा मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक प्रस्तावित बिल का उद्देश्य केवल क़ानूनी प्रक्रिया को प्रभावी बनाना था, पर राजनीतिक प्रतिक्रियाओं और विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र केंद्र ने फिलहाल कदम रोक दिया है। यदि भविष्य में इसे पुनः लाने का निर्णय होता है तो व्यापक सार्वजनिक चर्चा और पार्टियों की सहमति की आवश्यकता होगी। फिलहाल पंजाब में यह मुद्दा संवेदनशील सार्वजनिक चर्चाओं और राजनीतिक समीक्षाओं का विषय बना हुआ है।