NPC पदोन्नति अनियमितता मामले में बड़ा फैसला,
दिल्ली हाईकोर्ट ने लोकपाल की कार्यवाही रद्द की
1 months ago Written By: Aniket prajapati
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल (NPC) में कथित पदोन्नति अनियमितताओं को लेकर लोकपाल द्वारा शुरू की गई कार्यवाही को पूर्ण रूप से रद्द कर दिया है। अदालत ने साफ कहा कि इस मामले में लोकपाल के पास कार्रवाई करने का अधिकार क्षेत्र ही नहीं था, क्योंकि शिकायत में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत किसी अपराध का जिक्र नहीं है। अदालत के इस फैसले का सीधा असर रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह और अन्य अधिकारियों पर पड़ेगा, जिनके खिलाफ यह कार्यवाही शुरू हुई थी।
क्या है पूरा मामला? यह विवाद 28 मार्च 2023 को NPC में दी गई कुछ पदोन्नतियों को लेकर उठी शिकायत से शुरू हुआ था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि ये पदोन्नतियां प्रक्रियाओं के विपरीत की गईं, जबकि याचिकाकर्ताओं का कहना था कि ये प्रमोशन पहले ही स्वीकृत हो चुके थे, यानी उस समय राजेश कुमार सिंह NPC से जुड़े पद पर नहीं थे। राजेश कुमार सिंह 1989 बैच के केरल कैडर के IAS अधिकारी हैं। बाद में 1 नवंबर 2024 को वे देश के 40वें रक्षा सचिव बने, जिससे यह मामला और अधिक संवेदनशील माना गया।
लोकपाल की कार्रवाई क्यों हुई थी रद्द? मार्च 2024 में हाईकोर्ट की एक अन्य बेंच ने लोकपाल के आदेश और उससे जुड़े नोटिसों पर रोक लगाई थी। उसके बाद अदालत की डिवीजन बेंच—जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर—ने इस फैसले को कायम रखते हुए कहा कि लोकपाल का अधिकार क्षेत्र केवल उन्हीं मामलों में बनता है, जहाँ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध हो।
अदालत में क्या दलीलें दी गईं? याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने बताया कि—
शिकायत केवल प्रक्रियात्मक अनियमितताओं से जुड़ी थी।
इसमें न कोई रिश्वत का आरोप था, न भ्रष्टाचार का, और न ही पद के दुरुपयोग का।
ऐसे में लोकपाल द्वारा की गई कार्रवाई पूरी तरह से अधिकार क्षेत्र से बाहर थी।
अदालत ने इन्हीं दलीलों को स्वीकार करते हुए लोकपाल की कार्यवाही रद्द कर दी।
फैसले का असर और आगे की प्रक्रिया हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद अब मामले में लोकपाल स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। अदालत ने साफ किया कि लोकपाल का दायरा सीमित है और केवल भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में ही वह हस्तक्षेप कर सकता है। यह फैसला कई अन्य शिकायतों के लिए भी एक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है।