Dev Diwali 2025 : जब खुद धरती पर उतरते हैं देवता, गंगा तट पर जगमगाएंगे लाखों दीप,
जानें 4 या 5 नवंबर आखिर कब है देव दिवाली
2 months ago Written By: Ashwani Tiwari
Dev Diwali News: वाराणसी, जिसे काशी या बनारस कहा जाता है, हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन एक अद्भुत दृश्य का साक्षी बनता है। इस दिन यहां देव दीपावली का भव्य पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवता स्वयं पृथ्वी पर उतरकर मां गंगा की आरती करते हैं। पूरा बनारस लाखों दीपों की सुनहरी रोशनी से जगमगा उठता है। यह दृश्य इतना भव्य होता है कि लगता है मानो धरती पर स्वर्ग उतर आया हो। देव दीपावली केवल दीप जलाने का पर्व नहीं है, बल्कि यह अंधकार पर प्रकाश और अहंकार पर भक्ति की विजय का प्रतीक भी है।
त्रिपुरारी पूर्णिमा की कथा और महत्व द्रिक पंचांग के अनुसार, देव दीपावली को देव दिवाली या त्रिपुरोत्सव भी कहा जाता है। यह पर्व भगवान शिव की उस जीत का स्मरण कराता है जब उन्होंने त्रिपुरासुर नामक दैत्य का वध किया था। इसी कारण इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने अधर्म पर धर्म की जीत दर्ज की थी और देवताओं ने प्रसन्न होकर गंगा तट पर दीप जलाकर भगवान शिव की आराधना की थी। तभी से हर साल यह परंपरा बनारस में धूमधाम से निभाई जाती है।
कब और कैसे मनाई जाएगी देव दीपावली इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा की तिथि 4 नवंबर की रात 10:36 बजे से शुरू होकर 5 नवंबर की शाम 6:48 बजे तक रहेगी। द्रिक पंचांग के मुताबिक, देव दीपावली 5 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजे से 7:50 बजे तक रहेगा। यानी कुल 2 घंटे 35 मिनट का समय इस दिव्य पर्व को मनाने के लिए सर्वोत्तम रहेगा। इस दौरान बनारस के घाटों से लेकर मंदिरों तक लाखों दीए जलाए जाएंगे और मां गंगा की आरती से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठेगा।
गंगा स्नान और दान का महत्व देव दीपावली पर कार्तिक पूर्णिमा की सुबह भक्त गंगा स्नान करते हैं और शाम को मिट्टी के दीप प्रवाहित करते हैं। मान्यता है कि इस दिन किया गया गंगा स्नान और दान सौ गुना फल देता है। गंगा के तटों पर दीप जलाना पापों से मुक्ति दिलाता है। यही नहीं, काशी के सभी मंदिरों में भी इस दिन विशेष पूजा-अर्चना होती है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जब जीवन में श्रद्धा, सेवा और भक्ति का दीप जलता है, तभी सच्चे अर्थों में प्रकाश पर्व पूर्ण होता है।