कहानी अधूरी रह गई... काल पर बोलते-बोलते पूर्व मुख्य सचिव डॉ. शंभूनाथ ने तोड़ा दम
जानें पूरी बात
1 months ago
Written By: Ashwani Tiwari
Uttar Pradesh News: लखनऊ में शनिवार देर शाम हिन्दी साहित्य जगत को गहरा आघात पहुंचा। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शंभूनाथ का हिन्दी साहित्य संस्थान के निराला सभागार में पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के दौरान हृदयगति रुकने से निधन हो गया। यह घटना तब हुई जब वे मंच से उपन्यास पर अपना वक्तव्य दे रहे थे। अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और वह बेहोश होकर गिर पड़े। आनन-फानन में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया।
कार्यक्रम के दौरान बिगड़ी तबीयत
शनिवार की शाम निराला सभागार में साहित्यकार मनोरमा श्रीवास्तव के उपन्यास ‘व्यथा कौंतेय की’ का विमोचन कार्यक्रम चल रहा था। इस मौके पर डॉ. शंभूनाथ विशेष वक्ता के तौर पर मौजूद थे। वह उपन्यास पर बोलते हुए महाभारत के पात्र कर्ण की व्यथा और काल की अवधारणा पर विचार रख रहे थे। तभी उनकी जुबान लड़खड़ाई और वह सामने की मेज पर गिर गए। तुरंत उन्हें संभाला गया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर एंबुलेंस से सिविल अस्पताल पहुंचाया गया। वहां इमरजेंसी विभाग के डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
साहित्य और प्रशासन में अहम योगदान
डॉ. शंभूनाथ का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ और उन्होंने प्रशासनिक सेवा से लेकर साहित्यिक जगत तक अपनी अलग पहचान बनाई। वे उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव के पद से 30 जून 2007 को सेवानिवृत्त हुए थे। रिटायरमेंट के अगले ही दिन उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया। अपने दो साल के कार्यकाल में उन्होंने हिन्दी भाषा और साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का प्रयास किया। उनके कार्यकाल में संस्थान के प्रेक्षागृह और सभागार को महान साहित्यकारों यशपाल, निराला और प्रेमचंद के नाम पर रखा गया।
अंतिम वक्त में भी सुना रहे थे कहानी
डॉ. शंभूनाथ का जीवन साहित्य के प्रति समर्पण का उदाहरण रहा। निधन से ठीक पहले वे मंच से काल पर आधारित कहानी सुना रहे थे, जिसमें बता रहे थे कि कैसे काल राजा का पीछा करता है। साहित्यिक चिंतन के बीच ही उनकी तबीयत बिगड़ी और उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी मौत की खबर से साहित्य और प्रशासनिक जगत दोनों में शोक की लहर है।