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EVM पर उठते सवालों के बीच योगी सरकार का बड़ा फैसला, यूपी में नगर पालिका और नगर पंचायत चुनाव के लिए अभी से कसी कमर

1 months ago
Written By: Sushant Pratap Singh

लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2028 में होने वाले नगर पालिका और नगर पंचायत चुनावों को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) से कराने का बड़ा फैसला लिया है। जिसके लिए शासन स्तर पर प्रस्ताव तैयार किया गया है और ईवीएम व उससे जुड़े अन्य जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर की व्यवस्था अभी से शुरू कर दी गई है। एक तरफ जहां विपक्ष EVM पर सवाल उठा रही है तो वहीं दूसरी तरफ अब प्रदेश सरकार नगर पालिका और नगर पंचायत का चुनाव भी EVM से कराने की तैयारी में जुट गई है। 

745 निकायों में होगा ईवीएम का उपयोग
प्रदेश में कुल 762 नगर निकाय हैं, जिनमें 17 नगर निगम, 200 नगर पालिका परिषद और 545 नगर पंचायत क्षेत्र शामिल हैं। हालांकि प्रस्तावित योजना के अनुसार ईवीएम का उपयोग 745 निकायों—यानी नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों—में किया जाएगा। वर्ष 2023 में नगर निगम चुनाव पहले ही ईवीएम से कराए जा चुके हैं।

कम समय में होगी मतगणना, कम होगा खर्च
शासन के उच्चपदस्थ सूत्रों के अनुसार, अभी इन चुनावों में समय है लेकिन तब तक ईवीएम और आवश्यक तकनीकी व्यवस्थाएं पूरी कर ली जाएंगी। इससे चुनाव प्रक्रिया में तेजी आएगी और मतगणना के समय में भी भारी कमी आएगी। साथ ही, चुनाव कराने में आने वाला खर्च भी काफी हद तक कम होगा।

क्या होता है नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत?

नगर निगम (Municipal Corporation)
ये स्थानीय निकाय प्रणाली का सबसे बड़ा और प्रमुख हिस्सा होता है। आमतौर पर नगर निगम उन्हीं शहरों में बनाए जाते हैं, जिनकी आबादी 5 लाख से अधिक होती है। प्रत्येक नगर निगम क्षेत्र कई वार्डों में बंटा होता है, जहां से जनता पार्षदों को चुनती है। नगर निगम का प्रमुख मेयर होता है, जिसे सीधे जनता चुनती है। यूपी में इस समय 17 नगर निगम हैं, जिनमें शाहजहांपुर को हाल ही में जोड़ा गया है।

नगर पालिका (Municipal Council)
नगर पालिका छोटे शहरों के लिए होती है, जहां जनसंख्या 1 से 5 लाख के बीच होती है। इसमें भी वार्डों में चुनाव होते हैं, और प्रमुख को नगर पालिका अध्यक्ष कहा जाता है, जिसे सीधे जनता चुनती है।

नगर पंचायत (Town Panchayat)
ये उन क्षेत्रों में बनाई जाती है जो गांव से तो बड़े हैं लेकिन पूर्णत: शहरी नहीं हुए हैं—जैसे कस्बे या तहसीलें। इनका भी संचालन चुने गए प्रतिनिधि और अध्यक्ष द्वारा किया जाता है।

EVM क्या है और क्यों है खास?
ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन एक बैटरी से चलने वाली मशीन होती है, जिसमें वोट दर्ज करने और गिनने की पूरी प्रक्रिया होती है। इसके दो मुख्य भाग होते हैं—बैलेट यूनिट, जो मतदाता इस्तेमाल करता है, और कंट्रोल यूनिट, जो पोलिंग अफसर के पास रहती है।

 एक ईवीएम में 64 उम्मीदवारों के नाम दर्ज किए जा सकते हैं।
 इसमें 3840 वोट दर्ज करने की क्षमता होती है।
 भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) इसे बनाते हैं।

ईवीएम का इतिहास
सबसे पहले 1982 में केरल की परूर सीट पर इसका उपयोग हुआ, लेकिन कानून न होने से सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव खारिज कर दिया। फिर 1989 में कानून में बदलाव हुआ, और 1998 में पहली बार आम सहमति से बड़े पैमाने पर ईवीएम का प्रयोग हुआ।

EVM पर उठते रहे हैं सवाल
2009 से लेकर अब तक कई बार राजनीतिक दलों ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। विपक्ष EVM पर सवाल उठाती रही है, बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और सुब्रमण्यम स्वामी से लेकर 2017 में 13 दलों ने चुनाव आयोग से बैलेट पेपर की मांग भी की थी। कोर्ट के निर्देश के बाद वीवीपैट की व्यवस्था भी जोड़ी गई ताकि हर वोट का ट्रेस रिकॉर्ड मौजूद रहे। उत्तर प्रदेश में अगले स्थानीय निकाय चुनाव 2028 में प्रस्तावित हैं, लेकिन सरकार ने अभी से ईवीएम और उससे जुड़े तकनीकी ढांचे की तैयारी शुरू कर दी है। इसका उद्देश्य पारदर्शिता, समय की बचत और लागत में कमी लाना है। हालांकि विपक्षी दलों की शंकाएं भी कायम हैं, लेकिन चुनाव आयोग और सरकार इसे लोकतंत्र की मजबूती का जरिया मानती हैं।

 

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