फतेहपुर के 200 साल पुराने मकबरे पर किसका हक,
11 बीघा बनाम 15 बिस्वा की जंग में छिपा सच
1 months ago
Written By: Ashwani Tiwari
Uttar Pradesh News: फतेहपुर के आबूनगर इलाके में स्थित करीब 200 साल पुराना नवाब अब्दुल समद का मकबरा इन दिनों विवाद का केंद्र बन गया है। एक ओर कुछ हिंदू संगठनों का दावा है कि इस स्थल पर कभी शिव और कृष्ण का प्राचीन मंदिर था, वहीं मुस्लिम पक्ष इसे नवाब अब्दुल समद खान और उनके पुत्र अबू बकर की कब्र बताता है। यह स्थान राष्ट्रीय संपत्ति और वक्फ भूमि घोषित किया जा चुका है। हाल ही में जब कुछ हिंदू कार्यकर्ता परिसर में घुसकर भगवा झंडा फहराने और अनुष्ठान करने लगे तो पुलिस को बैरिकेडिंग और लाठीचार्ज करना पड़ा। बढ़ते विवाद को देखते हुए प्रशासन ने पूरी जांच की और 75 पेज की रिपोर्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेज दी है।
जांच में सामने आई विसंगतियां
फतेहपुर कोतवाली क्षेत्र के इस विवादित मकबरे को लेकर गठित उच्चस्तरीय जांच समिति में 2 अपर जिलाधिकारी, 3 उपजिलाधिकारी, 2 तहसीलदार और 12 लेखपाल शामिल रहे। समिति ने जमीन से जुड़े पुराने रिकॉर्ड, खतौनी, जमींदारी काल के दस्तावेज और वक्फ बोर्ड के कागजातों की गहन जांच की। रिपोर्ट के अनुसार, गाटा संख्या 753 के तहत मकबरे की जमीन मौजूदा खतौनी में 11 बीघा दर्ज है, जबकि वक्फ बोर्ड के दस्तावेजों में केवल 15 बिस्वा जमीन वक्फ संपत्ति के रूप में दर्शाई गई है। यानी दोनों दस्तावेजों में करीब 10 बीघा से ज्यादा की विसंगति पाई गई है, जिससे हिंदू संगठनों की चिंता बढ़ गई है।
पुराने रिकॉर्ड से वर्तमान तक का अध्ययन
रिपोर्ट में गाटा संख्या 753 की उत्पत्ति, खाता संख्या में हुए बदलाव और वर्षों से जमीन के उपयोग का पूरा ब्यौरा दिया गया है। पुराने जमींदारी काल के दस्तावेजों से लेकर मौजूदा रिकॉर्ड तक का तुलनात्मक अध्ययन किया गया। मकबरे के निर्माण काल, अस्तित्व और उपयोग से जुड़े तथ्यों की भी पड़ताल की गई है। सूत्रों का कहना है कि रिपोर्ट में सभी पक्षों की दावेदारी और दस्तावेजों की समीक्षा कर सरकार को स्पष्ट सुझाव दिए गए हैं। अब अंतिम फैसला राज्य सरकार को लेना है कि इस जमीन पर किसका दावा वैध माना जाए।
प्रशासन सतर्क सुरक्षा कड़ी
विवाद की संवेदनशीलता को देखते हुए प्रशासन ने आबूनगर और आसपास के इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी कर दी है। पुलिस बल के साथ खुफिया एजेंसियों को भी अलर्ट पर रखा गया है ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति से बचा जा सके। फिलहाल सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि राज्य सरकार इस विवादित जमीन पर क्या निर्णय लेती है।