घोसी उपचुनाव की तैयारी तेज: सपा सहानुभूति पर दांव,
भाजपा नए चेहरे तलाशने में जुटी
1 months ago Written By: Aniket prajapati
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट, जो विधायक सुधाकर सिंह के निधन के बाद खाली हुई है, अब उपचुनाव के लिए तैयार है। इस सीट को लेकर पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपनी रणनीतियाँ मजबूत करने में जुटे हैं। सपा सहानुभूति लहर का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है, जबकि भाजपा नए और पुराने चेहरों को परख रही है। घोसी की जमीन पिछले कई चुनावों से सपा और भाजपा के बीच झूलती रही है, ऐसे में इस उपचुनाव को 2027 विधानसभा चुनाव की ‘मिनी बैटल’ भी कहा जा रहा है।
घोसी सीट पर तीसरे उपचुनाव की पृष्ठभूमि घोसी सीट पर पिछले छह वर्षों में दो आम चुनाव और दो उपचुनाव हो चुके हैं। अब तीसरा उपचुनाव भी तय है। 2023 के उपचुनाव में सपा के सुधाकर सिंह ने भाजपा के वरिष्ठ नेता और मंत्री दारा सिंह चौहान को 42 हजार वोटों से भारी शिकस्त दी थी। यह तब हुआ जब चौहान ने खुद इस्तीफा देकर चुनाव लड़ने का फैसला किया था, लेकिन बार-बार पार्टी बदलने का फैसला जनता को रास नहीं आया।
सपा दिवंगत विधायक के बेटे पर दांव लगाने को तैयार सूत्रों के मुताबिक, समाजवादी पार्टी दिवंगत विधायक सुधाकर सिंह के बेटे सुजीत सिंह को उम्मीदवार बनाना चाहती है। सुजीत दो बार ब्लॉक प्रमुख रह चुके हैं और अपने पिता की मजबूत राजनीतिक जमीन पर भरोसा कर सकते हैं। सुधाकर सिंह के अचानक निधन से उपजी सहानुभूति भी सपा की रणनीति में बड़ी भूमिका निभाएगी।
भाजपा में नए चेहरे की खोज भाजपा के लिए यह उपचुनाव चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है। दारा सिंह चौहान के दोबारा मैदान में उतरने की संभावना बेहद कम है क्योंकि हार के बाद उन्हें विधान परिषद भेजकर मंत्री बनाया जा चुका है। ऐसे में पूर्व विधायक विजय राजभर फिर से एक संभावित चेहरा हो सकते हैं। पार्टी संगठन कई नामों पर मंथन कर रहा है।
बसपा की भूमिका अब भी अहम घोसी में पिछले चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि बसपा का वोटबैंक यहां निर्णायक भूमिका निभाता रहा है।
2017 में फागू चौहान 7 हजार वोटों से जीते थे, जबकि बसपा को 81 हजार और सपा को 59 हजार वोट मिले थे।
2019 के उपचुनाव में बसपा के वोटों ने मुकाबला बेहद करीबी बना दिया था और भाजपा के विजय राजभर सिर्फ 1773 वोटों से जीते थे।
2023 में बसपा और कांग्रेस दोनों ने उम्मीदवार नहीं उतारा, जिससे सपा और भाजपा की सीधी टक्कर हुई और सुधाकर सिंह ने बड़ी जीत दर्ज की।