469 साल पहले आज ही बदला भारत का इतिहास: 13 साल के अकबर ने पानीपत में हेमू को हराया,
एक तीर ने मिटा दी ‘विक्रमादित्य’ की गद्दी
1 months ago
Written By: Aniket Prajapati
आज से ठीक 469 साल पहले, यानी 5 नवंबर 1556 को हरियाणा की पानीपत की धरती पर वह निर्णायक लड़ाई लड़ी गई, जिसने भारत के इतिहास की दिशा बदल दी। यह थी पानीपत की दूसरी जंग, जिसमें एक ओर था 13 साल का मुगल बादशाह अकबर और उसका संरक्षक बैरम खान, तो दूसरी ओर थे हिंदू योद्धा हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू), जिन्होंने कुछ ही हफ्ते पहले दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर खुद को सम्राट घोषित किया था। लेकिन एक तीर ने इतिहास पलट दिया और अकबर “गाजी” कहलाया।
साधारण व्यापारी से सम्राट बनने की कहानी
हेमू की कहानी उस भारतीय की है जो अपनी काबिलियत से साधारण से असाधारण बन गया। हरियाणा के रेवाड़ी में जन्मे हेमू पहले शेरशाह सूरी के भरोसेमंद अधिकारी रहे। शेरशाह की मौत के बाद जब सूरी साम्राज्य में गुटबाजी बढ़ी, तब हेमू ने अपनी रणनीतिक सूझबूझ से कई युद्ध जीते। 1555 में जब हुमायूं ने दिल्ली और आगरा पर कब्जा किया, तो कुछ ही महीनों बाद उसकी मौत हो गई। यह मौका हेमू के लिए निर्णायक साबित हुआ उन्होंने तुरंत बंगाल से कूच कर मुगलों को एक-एक कर खदेड़ दिया और 7 अक्टूबर 1556 को दिल्ली जीतकर ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की।
पानीपत की धरती पर आमने-सामने दो सेनाएं
दिल्ली पर हेमू के कब्जे की खबर सुनते ही अकबर और बैरम खान ने पानीपत की ओर कूच किया। रास्ते में हेमू के तोपखाने का बड़ा हिस्सा मुगल सेनापति अली कुली खान ने लूट लिया यही गलती हेमू के लिए विनाशकारी साबित हुई। 5 नवंबर 1556, सुबह का वक्त। दोनों सेनाएं आमने-सामने थीं। मुगलों के पास करीब 10,000 घुड़सवार, जबकि हेमू की सेना 30,000 अफगान घुड़सवार और 500 हाथियों के साथ खड़ी थी। हर हाथी कवच से सुसज्जित था और उस पर तीरंदाज सवार थे। हेमू खुद ‘हवाई’ नाम के हाथी पर सवार होकर युद्ध का नेतृत्व कर रहे थे।
एक तीर जिसने पलट दी किस्मत
युद्ध की शुरुआत में हेमू की सेना भारी पड़ रही थी। हाथियों के हमले से मुगल घुड़सवार बिखर गए। लेकिन जब मुगल सेना एक गहरी खाई के पास पहुंची, तो हेमू के हाथी रुक गए। इसी मौके का फायदा उठाकर मुगल सैनिकों ने पीछे से हमला बोल दिया। लड़ाई के बीच ही हेमू के दो भरोसेमंद सेनापति शादी खान काकर और भगवान दास मारे गए।हेमू विजय के करीब थे, तभी किस्मत ने करवट ली एक तीर उनकी आंख में आ लगा, और वे बेहोश होकर गिर पड़े। सेनापति के गिरते ही उनकी सेना में अफरा-तफरी मच गई और जीत हार में बदल गई।
दो गलतियां जो इतिहास बदल गईं
हेमू की पहली गलती थी तोपखाने की कमजोर सुरक्षा, जिससे वह युद्ध से पहले ही मुगलों के हाथ लग गया। दूसरी गलती खुद आगे से लड़ना। अगर वह पीछे रहकर कमान संभालते, तो शायद परिणाम कुछ और होता। उनके बेहोश होते ही अफगान सेना बिखर गई। करीब 5000 सैनिक मारे गए और हेमू को कुछ घंटे बाद बेहोशी की हालत में बंदी बना लिया गया।
‘गाजी’ बना अकबर, हेमू का सिर काबुल भेजा गया
हेमू को मुगल शिविर में लाया गया, जहां बैरम खान ने अकबर से कहा “इसे खुद मारो, ताकि तुम्हें गाजी का खिताब मिले।” इतिहासकारों के मत अलग हैं कुछ कहते हैं अकबर ने मना किया, जबकि ‘तारीख-ए-अकबरी’ के मुताबिक उसने खुद ही हेमू का सिर काटा और “गाजी” कहलाया। हेमू का सिर काबुल भेजा गया, जबकि धड़ दिल्ली के पुराने किले के दरवाजे पर टांगा गया। उनके सैनिकों को मौत के घाट उतारकर एक ‘मीनार-ए-गंज’ बनाई गई जिसकी तस्वीर आज भी अकबरनामा में दर्ज है।
इतिहास की सीख: एक रणनीतिक गलती सब कुछ बदल सकती है
पानीपत की दूसरी जंग ने यह साबित किया कि युद्ध में सिर्फ बहादुरी नहीं, रणनीति और धैर्य ही जीत तय करते हैं। हेमू ने इतिहास में अपने साहस, संगठन क्षमता और आत्मविश्वास की अमिट छाप छोड़ी। लेकिन उनकी दो गलतियों ने वह सपना तोड़ दिया जो उन्होंने हिंदवी साम्राज्य के पुनर्निर्माण के लिए देखा था।