मौलाना और मुफ्ती की कमाई का सच,
जानिए कितनी होती है उनकी असली सैलरी और कहां से आती है
23 days ago Written By: Ashwani Tiwari
Uttar Pradesh News: मुस्लिम समाज में मस्जिदों के इमाम, मौलाना और मुफ्ती सिर्फ धार्मिक नेता नहीं होते, बल्कि उनकी जिम्मेदारी बहुत बड़ी होती है। ये लोग रोज़ाना नमाज़ की इमामत करते हैं, कुरान की तालीम देते हैं और समाज के धार्मिक मामलों में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। हालांकि, इस्लाम में इनके काम की कोई तय सैलरी नहीं है। आम लोगों में हमेशा यह सवाल रहता है कि आखिर इमाम, मौलाना और मुफ्ती की तनख्वाह कहां से आती है और कितनी होती है।
सैलरी नहीं, सिर्फ तोहफा मिली जानकारी के अनुसार मस्जिद में इमाम, मौलाना या मुफ्ती की कोई तय सैलरी नहीं होती। इस्लाम में इसे नौकरी नहीं कहा जाता और इसे बिकाऊ चीज़ नहीं माना जाता। हां, मेहनत और समय के हिसाब से उन्हें गिफ्ट या हदिये के तौर पर कुछ राशि दी जा सकती है। आमतौर पर मस्जिद की कमेटी इमाम को 8 से 15 हज़ार रुपये और मुफ्ती को 15 से 20 हज़ार रुपये तक देती है।
सैलरी का स्रोत और समाज की भूमिका ये पैसा सीधे इलाके के मुस्लिम समाज के लोगों से चंदा इकट्ठा करके दिया जाता है। मौलाना इफराहीम हुसैन ने कहा कि यह रकम इमाम और मुफ्ती की मेहनत और समय के लिए उपहार के रूप में दी जाती है, न कि किसी रोजगार के बदले में।
जीवन यापन के लिए अतिरिक्त काम इतनी कम रकम में परिवार का खर्च चलाना मुश्किल होता है। इसलिए अधिकतर इमाम और मुफ्ती अपने साथ कोई छोटा व्यवसाय, रोज़गार या अन्य कारोबार भी करते हैं। ताकि घर-गृहस्थी का खर्च आसानी से चल सके और वे अपने धार्मिक कर्तव्यों को पूरी लगन से निभा सकें।