इंदौर के सराफा बाजार की अनोखी कहानी: दिन में ज्वेलरी मार्केट,
रात में दुनिया का मशहूर फूड हब
1 months ago Written By: Aniket Prajapati
इंदौर का सराफा बाजार सिर्फ एक मार्केट नहीं, बल्कि शहर की पहचान बन चुका है। दिन में यह जगह सोना-चांदी और आभूषणों का सबसे बड़ा केंद्र होती है, लेकिन रात होते ही पूरा बाजार अचानक एक चमकदार, रौशन और भीड़भाड़ वाले फूड कोर्ट में बदल जाता है। यहां रात 4 बजे तक लोगों की भीड़ लगी रहती है। देश-दुनिया से आने वाले पर्यटक यहां के अनोखे स्वादों का मजा जरूर लेते हैं। खोपरा पेटीज, जामुन शॉट्स, दही बड़े, गोल्ड वाली आइसक्रीम और बड़े-बड़े जलेबे—ऐसे व्यंजन कहीं और नहीं मिलते। लेकिन सैकड़ों साल पुराना यह फूड मार्केट आखिर शुरू कैसे हुआ? इसकी कहानी उतनी ही दिलचस्प है।
सराफा बाजार कैसे बना इंदौर का मिडनाइट फूड मार्केट सराफा बाजार की शुरुआत 18वीं सदी में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होलकर के शासनकाल में हुई थी। उस समय सुरक्षा को लेकर व्यापारी चिंतित रहते थे। रात में ज्वेलरी की दुकानें बंद होने के बाद चोरी का खतरा बढ़ जाता था। इसलिए दुकानदारों को अनुमति दी गई कि वे दुकानें बंद होने के बाद फूड विक्रेताओं को अपनी जगह दे दें, ताकि रातभर बाजार में लोगों की आवाजाही बनी रहे और सुरक्षा का माहौल बना रहे। लोगों की मौजूदगी से चोरी की घटनाएं लगभग खत्म हो गईं, और यहीं से रात का सराफा बाजार शुरू हुआ।धीरे-धीरे यह चलन इतना लोकप्रिय हो गया कि आज यह बाजार दुनिया के उन अनोखे बाजारों में गिना जाता है जो दिन में ज्वेलरी हब और रात में फूड पैराडाइज बन जाते हैं।
कुछ लोगों का अलग मत: मजदूरों की वजह से बढ़ा चलन हालांकि, विजय चाट के मालिक विजय ठाकुर इस कहानी से पूरी तरह सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि उस समय इंदौर बहुत सुरक्षित शहर था और यहां चोरी लगभग नहीं होती थी। इसलिए सुरक्षा वाली कहानी उन्हें पूरी तरह भरोसेमंद नहीं लगती। वे मानते हैं कि इंदौर में कई कपड़ा मिलें थीं और उनके मजदूर देर रात काम खत्म होने पर यहां आकर नाश्ता करते थे। मजदूरों की बढ़ती आवाजाही से बाजार धीरे-धीरे फूड मार्केट के रूप में विकसित हो गया और फिर यह इंदौर की पहचान बन गया। आज सराफा बाजार देश का पहला ऐसा बाजार है जो आधी रात से लेकर सुबह 4 बजे तक खुला रहता है और जहां हर रात हजारों लोग अनोखे स्वादों का आनंद लेने आते हैं।