कौन हैं रामभद्राचार्य के उत्तराधिकारी रामचंद्र दास, जिन्होंने प्रेमानंद विवाद को कर दिया शांत
जानें पूरी बात
1 months ago
Written By: Ashwani Tiwari
Uttar Pradesh News: प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज पर की गई टिप्पणी के बाद जगदगुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज इन दिनों सुर्खियों में हैं। संस्कृत ज्ञान को लेकर दिए गए बयान ने विवाद को और गहरा कर दिया। सोशल मीडिया पर बयान वायरल होते ही संत समाज से लेकर आम लोगों तक में चर्चा छिड़ गई। हालांकि अब इस मामले को शांत करने के लिए उनके उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास आगे आए हैं और उन्होंने विवाद को खत्म करने की दिशा में अहम संदेश दिया है।
कौन हैं आचार्य रामचंद्र दास
जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य महाराज के उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास का असली नाम जय मिश्रा है। वह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के रहने वाले हैं। बचपन से ही जगदगुरु की सेवा में जुड़े रहे और वर्ष 2018 में चित्रकूट स्थित श्री तुलसी पीठ पर पट्टाभिषेक कार्यक्रम में जगदगुरु ने उन्हें उत्तराधिकारी घोषित किया। इस मौके पर योग गुरु बाबा रामदेव सहित देशभर के बड़े संत और राजनीतिक हस्तियां मौजूद थीं।
कैसे शुरू हुआ विवाद
जगदगुरु रामभद्राचार्य महाराज ने हाल ही में प्रेमानंद महाराज को लेकर कहा था कि उन्हें संस्कृत का कोई ज्ञान नहीं है और यदि वे चमत्कारी हैं तो संस्कृत के एक श्लोक का अर्थ बताएं। इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना शुरू हो गई। विवाद बढ़ने पर जगदगुरु ने सफाई दी कि उन्होंने कोई अभद्र टिप्पणी नहीं की, बल्कि केवल यह कहा कि हर संत को संस्कृत का ज्ञान होना चाहिए।
सनातन धर्म पर बयान
जगतगुरु ने आगे कहा कि आज सनातन धर्म पर चारों ओर से आक्रमण हो रहा है, ऐसे समय में सभी हिंदुओं को एकजुट होना होगा। उन्होंने कहा कि 500 वर्षों की लड़ाई के बाद अयोध्या में राम मंदिर बन पाया है और जल्द ही काशी व मथुरा का भी समाधान होगा। उन्होंने यह भी कहा कि वे स्वयं आज भी 18 घंटे तक अध्ययन करते हैं और चमत्कार पर भरोसा नहीं करते।
रामचंद्र दास की अपील
उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास ने कहा कि जगदगुरु का पूरा जीवन शास्त्रों के अध्ययन और विद्या के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित रहा है। उन्होंने कहा कि हर संत को समाज में उपदेश देने से पहले ज्ञान और संस्कृत की समझ होनी चाहिए। रामचंद्र दास ने साफ किया कि जगदगुरु ने प्रेमानंद महाराज की निंदा नहीं की, बल्कि संवाद की परंपरा को बनाए रखने की बात कही है। उन्होंने अपील की कि लोग इंटरव्यू को काट-छांट कर विवाद न फैलाएं और सनातन संतों के बीच मतभेद की तस्वीर पेश न करें।