केशव-मौर्य की राजनाथ से मुलाकात और 'मुख्यमंत्री'
पोस्टर—क्या UP राजनीति में उठ रहे हैं नए सुर?
1 months ago Written By: Aniket prajapati
उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2027 विधानसभा चुनाव से पहले हलचल तेज हो गई है। गुरुवार को उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात ने सियासी चर्चा को और हवा दे दी है। हालांकि केशव ने इसे शिष्टाचार भेंट बताया है, वहीं लखनऊ के एक कार्यक्रम में उनके पीछे लगे पोस्टर पर ‘मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश’ लिखा दिखने से सोशल मीडिया पर कयासों का बाजार गरम हो गया। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह महज भूल भी हो सकती है और किसी सोची-समझी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी — दोनों ही संभावनाओं पर दलों में चर्चा जारी है।
राजनाथ-मुलाकात: शिष्टाचार या राजनीति की तैयारी? केशव प्रसाद मौर्य ने 27 नवंबर को राजनाथ सिंह से शिष्टाचार भेंट की और उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कीं। उन्होंने लिखा कि रक्षा मंत्री से मार्गदर्शन मिला। राजनीतिक हलकों में इसे और अहम इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि मौर्य को हाल के समय में पार्टी की बड़ी जिम्मेदारियां दी जा रही हैं, विशेषकर बिहार में एनडीए के प्रदर्शन में उनकी भूमिका को देखते हुए।
पोस्टर विवाद और सोशल मीडिया प्रभाव लखनऊ के कार्यक्रम में लगाए गए बैकड्रॉप पर केशव के नाम के नीचे ‘मुख्यमंत्री’ लिखा दिखा, जिसकी तस्वीरें वायरल हुईं। आयोजकों ने बाद में बैकड्रॉप को एडिट कर ‘उप मुख्यमंत्री’ कर दिया। इस घटना ने सोशल मीडिया पर तरह-तरह की चर्चा छेड़ दी—कुछ लोग इसे प्रशासनिक चूक बता रहे हैं, तो कुछ राजनीतिक संकेत मान रहे हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय ने भी इस मामले पर आयोजन से बात कर नाराज़गी जताई, जबकि आयोजक इसे सरकार के स्तर पर फाइनल किए गए डिजाइन की गलती कह रहे हैं।
केशव का सियासी वजन और 2027 की रणनीति केशव मौर्य को ओबीसी नेतृत्व के प्रमुख चेहरों में माना जाता है और उन्हें गृहमंत्री अमित शाह का करीबी कहा जाता है। 2017 में पार्टी अध्यक्ष रहते हुए उनकी भूमिका अहम रही थी। बिहार में उनका सफल रोल और उपयुक्त जनसमर्थन के कारण अब उन्हें यूपी के चुनावी समीकरण में संकटमोचन के तौर पर देखा जा रहा है। वहीं समाजवादी-संबंधी PDA फार्मूले के चलते BJP के ओबीसी वोट बैंक को बचाने में मौर्य की भूमिका और भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
निहित संदेश और आगे का परिदृश्य हालांकि अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है और पार्टी नेतृत्व ने चुप्पी बनाए रखी है, पर 2027 तक समय लंबा है और बैठकों का दौर अभी शुरू है। केशव-राजनाथ मुलाकात, पोस्टर विवाद और मौर्य की बढ़ती भूमिका—ये सभी संकेत राजनीति के नए समीकरणों की ओर इशारा करते हैं। आने वाले दिनों में यह स्पष्ट होगा कि ये संकेत रणनीति का हिस्सा हैं या सिर्फ प्रशासनिक चूक।