तरकश के तीर: रिश्वत की कोई रसीद नहीं नहीं होती साहब....
लखनऊ शहर के अवैध अतिक्रमण पर वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश सिंह की त्वरित टिप्पणी
1 months ago
Written By: State Desk
वैसे तो इस तरह की कई और जगह भी है राजधानी लखनऊ में…मगर अभी मैं इधर से गुज़रा तो बरबस मन में एक ख़्याल आया…
फन मॉल से जो सड़क नये बन रहे नगर निगम के कार्यालय की तरफ़ से निशातगंज की तरफ़ जा रही है….उसके कोने…संभवतः अतिक्रमण कर कुछ दुकानें लगने लगी हैं, (फन माल के आस-पास सभी सड़कों की हालत है ये)…जहां सैकड़ों मोटरसाइकिलें कई कारें आड़ी तिरछी खड़ी कर लोग फुल इंजॉय जैसे स्थिति में थे, न किसी का डर ना परवाह और न ही उधर से गुजरने वाले जाम में फंसे आम लोगों की कोई सुधि …कुछ अति जैसे हालात थे…
उस समय मेरे मन में एक विचार आया…क्या स्थानीय थाना इंचार्ज,सर्किल अफ़सर,DCP इधर से अपना कार्यक्षेत्र होने के नाते कभी नहीं गुज़रते होंगे…अगर गुजरते हैं तो वहाँ हो रही इस अति पर बोलते क्यूँ नहीं…
लखनऊ विकास प्राधिकरण और नगर निगम विभाग के जो अफसर शहर में होने वाले अतिक्रमण को देखते व रोकते हैं क्या वह ऐसी जबरिया अतिक्रमण की हुई सड़कों से नहीं गुज़रते…अगर गुज़रते हैं तो इन जगहों की जानकारी से गुम क्यों रहते हैं? आखिर वह इससे बेखयाल, बेपरवाह, बेसुध क्यों हैं…
ये साहब लोग क्यों चुप हैं, समझ मैं भी रहा हूं समझ आप भी रहे हैं मगर,मगर सच लिख दिया जाये, कह दिया जाये, तो यही साहब लोग सबूत मांगने लगेंगे…
अब सबूत मांगा भी तो उनकी बात पर यही कहावत याद आ जाएगी कि…"रिश्वत की कोई रसीद नहीं नहीं होती"…
नोट- लेखक देश के जाने माने पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट हैं ।
