नगर निगम प्रशासन की लापरवाही पर भड़की महापौर…
कहा, “जनप्रतिनिधियों और जनता दोनों का हो रहा अपमान”
2 months ago Written By: Ashwani Tiwari
Uttar Pradesh News: नगर निगम लखनऊ की कार्यकारिणी की गुरुवार को हुई बैठक एक बार फिर नगर निगम प्रशासन की लापरवाह कार्यशैली के कारण निर्णायक नहीं हो सकी। बैठक की अध्यक्षता माननीय महापौर श्रीमती सुषमा खर्कवाल ने की। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि प्रशासन की निष्क्रियता और जनहित से जुड़े मुद्दों की अनदेखी अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। महापौर ने कहा कि कार्यकारिणी और सदन दोनों ही मिलकर नगर निगम प्रशासन के साथ निर्णय लेते हैं, ताकि जनता और कर्मचारियों से जुड़े मुद्दों का समाधान हो सके। परंतु, खेद की बात है कि प्रशासन लगातार जनप्रतिनिधियों और नगर निगम प्रशासन द्वारा पारित निर्णयों को दरकिनार कर रहा है। इसके साथ ही सरकारी धन और समय दोनों का नुकसान किया गया है। उन्होंने कहा कि “यह स्थिति न केवल प्रशासनिक उदासीनता का उदाहरण है, बल्कि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों और लखनऊ की जनता दोनों का खुलेआम अपमान है।”
महत्वपूर्ण विषयों की अनदेखी महापौर ने कहा कि चाहे मामला शहर की सफाई व्यवस्था का हो, मार्ग प्रकाश का, मृतक आश्रितों के अधिकारों का, जलभराव का, टूटी सड़कों का या फिर नगर निगम की भूमियों पर अवैध कब्जों का हर स्तर पर प्रशासन की कार्यशैली निराशाजनक रही है। उन्होंने यह भी कहा कि समाज में उत्कृष्ट कार्य करने वाले नागरिकों और लोकनायकों के सम्मान से जुड़े प्रस्तावों पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई, जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
पुनरीक्षित बजट पर आपत्ति — “चर्चा के बजाय डाक से भेजा गया दस्तावेज़”
महापौर श्रीमती सुषमा खर्कवाल ने कहा कि सबसे गंभीर लापरवाही पुनरीक्षित बजट के मामले में देखने को मिली है। उन्होंने कहा, “पुनरीक्षित बजट एक गोपनीय और महत्वपूर्ण दस्तावेज़ होता है, जिस पर नगर आयुक्त, प्रभारी अधिकारी और विभागाध्यक्षों के साथ विस्तृत चर्चा होनी चाहिए। लेकिन निगम प्रशासन ने इसे केवल चपरासी और डाक के माध्यम से मेरे पास भेज दिया। यह न केवल प्रक्रियागत गलती है, बल्कि बजट जैसी गंभीर प्रक्रिया के प्रति प्रशासन की लापरवाही भी दर्शाता है।” उन्होंने कहा कि बजट कोई औपचारिक दस्तावेज नहीं, बल्कि शहर के विकास की दिशा तय करने वाला आधार होता है। ऐसे दस्तावेजों पर इस तरह की उदासीनता स्वीकार्य नहीं है।
महापौर ने की कड़ी टिप्पणी — “जनता का पैसा और प्रतिनिधियों का समय किया बर्बाद” महापौर ने कहा कि “आज की कार्यकारिणी बैठक और पिछली बैठक में नगर निगम प्रशासन ने जनता का धन और जनप्रतिनिधियों का समय दोनों व्यर्थ किया है। यह बेहद खेदजनक है कि दो वर्षों से अधिक समय बीत जाने के बाद भी पूर्व में पारित कार्यकारिणी और सदन के निर्णयों का अनुपालन नहीं किया गया।” उन्होंने कहा कि ऐसे में यह तय किया गया है कि जब तक निगम प्रशासन पहले से लिए गए सभी निर्णयों का अनुपालन नहीं कर देता, तब तक कार्यकारिणी की अगली बैठक नहीं बुलाई जाएगी। महापौर ने निगम प्रशासन को निर्देशित किया कि वह यह स्पष्ट करे कि निर्णयों के अनुपालन में उन्हें कितना समय लगेगा, ताकि उसी आधार पर अगली बैठक की तिथि तय की जा सके।
“जनप्रतिनिधि जनता की आवाज़ हैं” अंत में महापौर ने कहा -“लखनऊ की जनता ने हम पर भरोसा जताया है और यह हमारा कर्तव्य है कि उनके विश्वास की रक्षा करें। नगर निगम प्रशासन को यह समझना होगा कि जनप्रतिनिधि जनता की आवाज़ हैं। यदि उनकी अनदेखी की जाती है, तो यह जनता का अपमान है। प्रशासन को जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी, तभी शहर में विकास की गति तेज़ हो सकेगी।