7 दिन में दर्जनभर मौतें, मऊ के अवैध अस्पतालों और झोलाछाप डॉक्टरों पर हंगामा,
सांसद ने DM-CMO से की शिकायत
7 days ago
Written By: Ashwani Tiwari
Uttar Pradesh News: मऊ जनपद में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल स्थिति ने लोगों को गहरी चिंता में डाल दिया है। बीते एक सप्ताह के भीतर अलग-अलग अवैध निजी अस्पतालों में हुई मौतों ने पूरे जिले को हिला कर रख दिया है। बलिया मोड़ स्थित हाईटेक अस्पताल में प्रसूता की मौत, फतेहपुर मंडाव के एक निजी अस्पताल में प्रसूता की जान जाना, शहर के रुद्रा हॉस्पिटल में लड़की की मौत और मोहम्मदाबाद गोहना स्थित रीमा हॉस्पिटल में नवविवाहिता की मौत जैसे मामलों ने प्रशासन और आम जनता दोनों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर ऐसे अस्पताल प्रशासन की नाक के नीचे किसके सहारे चल रहे हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि इन मौतों के लिए जिम्मेदार केवल झोलाछाप डॉक्टर हैं या कोई और भी?
स्थानीय नेताओं की जिम्मेदारी पर सवाल
जनपद मऊ की राजनीति हमेशा से चर्चा में रही है। जिले की चार विधानसभा सीटों पर भाजपा, बसपा और समाजवादी पार्टी के बड़े नेताओं का दबदबा रहा है। मधुबन से सत्ताधारी दल के विधायक, मोहम्मदाबाद गोहना से समाजवादी पार्टी के विधायक, घोसी से सपा से जुड़े विधायक और मऊ सदर सीट से विवादित विधायक – सभी क्षेत्र की राजनीति में प्रभावशाली माने जाते हैं। इसके अलावा विधानपरिषद के सदस्य और मुख्यमंत्री से करीबी संबंध रखने वाले नेता भी जिले से जुड़े हैं। बावजूद इसके, जिले की स्वास्थ्य सेवाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
सरकारी अस्पतालों का हाल
निजी अस्पतालों के अलावा सरकारी अस्पतालों की स्थिति भी चिंताजनक है। सांसद के पत्र लिखने और जिलाधिकारी प्रवीण मिश्रा द्वारा जांच टीम गठित करने के बाद भी हालात जस के तस बने हुए हैं। जिले में 145 डॉक्टरों की जगह केवल 89 डॉक्टर ही सेवाएं दे रहे हैं। यही डॉक्टर मुख्यमंत्री स्वास्थ्य मेला, वीआईपी सेवाओं, जेल कर्मियों और रात्रिकालीन आकस्मिक सेवाओं का भी बोझ उठा रहे हैं। कई अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी के कारण फार्मासिस्ट ही अस्पताल चला रहे हैं। कुछ अस्पताल तो ऐसे हैं जहां डॉक्टरों की नियुक्ति न होने से अब तक सेवाएं शुरू ही नहीं हो पाई हैं।
सुधार की उम्मीद
मऊ, जो कभी पूर्वांचल में वाराणसी और गोरखपुर के बाद बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जाना जाता था, आज बदहाली का शिकार है। एक तरफ सरकारी डॉक्टरों की कमी है, तो दूसरी ओर झोलाछाप डॉक्टरों की भरमार है। हालांकि सरकार ने कसारा में पीपीई मॉडल से एक मेडिकल कॉलेज बनवाया है, जिसका संचालन नवरात्र से शुरू होने की संभावना है। उम्मीद की जा रही है कि इससे जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार हो सकेगा।