मेरठ की तीन नेत्रहीन बेटियों ने बनाया अनोखा इतिहास,
गीता पाठ से लेकर गायन तक दिखाया कमाल
9 days ago Written By: Aniket prajapati
मेरठ से एक प्रेरणादायक कहानी सामने आई है, जिसने पूरे देश का दिल जीत लिया है। यहां की तीन नेत्रहीन बेटियां रिदा जेहरा, संजना और माही ने अपनी प्रतिभा, आत्मविश्वास और संस्कारों के दम पर वह कर दिखाया है, जिसकी कल्पना भी कई लोग नहीं करते। जन्म से देखने की क्षमता ना होने के बावजूद इन तीनों बच्चियों ने साबित कर दिया कि असली रोशनी आंखों में नहीं, बल्कि मन और आत्मा में होती है। हाल ही में पंजाब में आयोजित नेत्रहीन बच्चों की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी इन बच्चियों का प्रदर्शन शानदार रहा और मेरठ का नाम पूरे देश में चमक उठा।
रिदा जेहरा: अंधेरे में गीता की रोशनी 16 वर्षीय रिदा जेहरा जन्म से नेत्रहीन हैं, लेकिन उनकी आत्मा में गीता का प्रकाश हमेशा जगमगाता रहता है। इस्लाम धर्म में पली-बढ़ी रिदा को भगवद्गीता के सभी अध्याय और श्लोक कंठस्थ हैं, और वे उनके अर्थ भी गहराई से समझाती हैं। उनकी यह प्रतिभा उन्हें देशभर में खास बनाती है।रिदा को रानी लक्ष्मीबाई अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव और मनोहर लाल खट्टर जैसे नेता भी उनकी बुद्धि और गुणों की तारीफ कर चुके हैं।रिदा कहती हैं, “मैं दुनिया को देख नहीं सकती, लेकिन गीता मुझे अपने भीतर की दुनिया दिखाती है। वही मेरी असली रोशनी है।”
ब्रेल में मेरठ की चमक — राष्ट्रीय प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन पंजाब में आयोजित नेत्रहीन बच्चों की राष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिता में रिदा ने ब्रेल राइटिंग में दूसरा स्थान, जबकि अंशिका वर्मा और माही कश्यप ने ब्रेल रीडिंग में तीसरा स्थान हासिल किया। इनकी गति और सटीकता देखकर निर्णायक भी प्रभावित हुए। यह उपलब्धि साबित करती है कि कठिनाइयाँ इन बच्चियों के हौसले को रोक नहीं सकतीं।
संजना—जिसकी आवाज़ ने खड़ा कर दिया पूरा सभागार संगीत में गहरी रुचि रखने वाली संजना ने प्रतियोगिता के मंच पर “ऐ मेरे वतन के लोगों” गीत गाकर सबको भावुक कर दिया। पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। संजना ने गायन में दूसरा स्थान प्राप्त किया।वह कहती हैं, “मेरा सपना है कि मैं प्रोफेशनल गायिका बनूं और अपने शहर का नाम रोशन करूं।”
माही—संस्कृत की विदुषी, उम्र छोटी पर ज्ञान गहरा माही कश्यप संस्कृत भाषा में अद्भुत पकड़ रखती हैं। वह पूरी भगवद्गीता संस्कृत में सुना सकती हैं, जो उनकी उम्र में बेहद दुर्लभ है। ब्रेल रीडिंग में तीसरा स्थान जीतकर उन्होंने अपनी प्रतिभा का प्रमाण दिया।
गीता पाठ से पहले चप्पल उतारीं, हाथ जोड़कर शुरू किया पाठ जब रिदा और माही ने श्लोक सुनाने शुरू किए, तो वे पहले खड़ी हुईं, फिर चप्पल उतारीं और दोनों हाथ जोड़कर गीता पाठ किया। जब पत्रकार ने बैठकर पढ़ने को कहा, तो उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया और कहा: “धार्मिक पाठ हमेशा पूरी मर्यादा और संस्कारों के साथ किया जाता है।”
तीनों बच्चियां देती हैं एक बड़ी सीख—प्रतिभा की आंख नहीं होती रिदा, संजना और माही तीनों ने साबित किया है कि सीमाएँ शरीर की नहीं, सोच की होती हैं। वे दुनिया के रंग नहीं देख पातीं, लेकिन उनके हौसले, मेहनत और संस्कारों से जो उजाला निकलता है, वह लाखों दिलों तक पहुंचता है।आज के समाज को इन बच्चियों से यह सीख लेने की जरूरत है कि अंधेरा कभी भी रोशनी को रोक नहीं सकता, अगर मन मजबूत हो।