किस स्थिति में मुस्लिम पुरुष कर सकते हैं एक से अधिक मैरिज?
इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
1 months ago
Written By: विनय के.सिंह
Muslim Polygamy India: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम समाज के पुरुषों द्वारा एक से अधिक विवाह करने को लेकर कहा कि मुस्लिम पुरुषों को दूसरी शादी तभी करनी चाहिए, जब वह सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार कर सकें। धर्मग्रंथ कुरान में विभिन्न कारणों से चार विवाह की अनुमति दी गई है। कोर्ट के मुताबिक पुरुष इसका अपने स्वार्थ के लिए दुरुपयोग करते हैं।
मुरादाबाद के फुरकान ने दाखिल की थी याचिका
दरअसल, मुरादाबाद से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम पुरुष को दूसरी शादी करने का तब-तक कोई अधिकार नहीं है, जब-तक वह सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार निभाने की क्षमता न रखता हो। कुरान ने खास वजहों से बहु विवाह की अनुमति दी है। इस्लामी काल में विधवाओं और अनाथों की सुरक्षा के लिए कुरान के तहत बहुविवाह की सशर्त इजाजत दी गई है। न्यायालय ने मुरादाबाद से जुड़े याचिकाकर्ता फुरकान एवं दो अन्य की ओर से दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए यह बातें कही हैं। फुरकान, अख्तर अली एवं खुशनुमा ने स्थानीय न्यायालय में नवंबर 2020 में आरोपपत्र का संज्ञान और समन आदेश को निलंबित करने की मांग की थी।
ट्रायल कोर्ट में दाखिल है आरोप पत्र
याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मुरादाबाद के मैनाठेर थाने में 2020 में आईपीसी की धारा 376, 495, 120 बी, 504 और 506 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज है। मामले में पुलिस ने ट्रायल कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल कर दी है। न्यायालय ने आरोप पत्र का संज्ञान लेकर तीनों को समन जारी किया था। एफआईआर में आरोप है कि याचिकाकर्ता फुरकान ने बिना बताए दूसरी शादी कर ली है, जबकि वह पहले से ही शादीशुदा था। उसने इस विवाह के दौरान बलात्कार किया। याचिकाकर्ता फुरकान के अधिवक्ता ने न्यायालय में तर्क दिया कि एफआईआर कराने वाली महिला ने खुद ही स्वीकार किया है कि उसने उसके साथ संबंध बनाने के बाद उससे विवाह की है।
शरीयत अधिनयम में चार विवाह की है अनुमति
न्यायालय में कहा गया कि आईपीसी की धारा 494 के तहत उसके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है, क्योंकि मुस्लिम कानून और शरीयत अधिनियम 1937 के तहत एक मुस्लिम व्यक्ति को चार बार तक विवाह करने की अनुमति है। न्यायालय में यह भी दलील दी गई की विवाह और तलाक से संबंधित सभी मुद्दों को शरीयत अधिनियम 1937 के अनुसार तय किया जाना चाहिए।
गुजरात हाईकोर्ट का दिया हवाला
फुरकान के अधिवक्ता ने जाफर अब्बास रसूल मोहम्मद मर्चेंट बनाम गुजरात राज्य के मामले में गुजरात हाईकोर्ट के 2015 के फैसले का हवाला भी दिया। कहा कि धारा 494 के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए दूसरे विवाह को अमान्य होना चाहिए, किंतु अगर मुस्लिम कानून में पहली शादी मुस्लिम कानून के तहत की गई है तो दूसरी शादी असामान्य है।