अजान, घंटियां और अरदास एक साथ,
जहां तीन धर्मों की आवाज़ें एक साथ देती हैं श्रद्धालुओं को सुकून…
18 days ago Written By: Ashwani Tiwari
देहरादून रोड, सहारनपुर यहां स्थित नौगजा पीर बाबा की दरगाह न सिर्फ धार्मिक स्थल है, बल्कि सद्भाव, आस्था और एकता का जीवंत प्रतीक भी है। दरगाह परिसर में एक ही छत के नीचे मस्जिद, मंदिर और गुरुद्वारा मौजूद हैं। यह स्थल हर रोज़ सैकड़ों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। हिंदू, मुस्लिम और सिख धर्म के लोग यहां एक साथ अपनी पूजा-अर्चना करते हैं। खासकर गुरुवार के दिन यहां मन्नत मांगने और चादर चढ़ाने वालों की भारी भीड़ उमड़ती है।
बाबा की मजार और तीनों धर्मों की एकता स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, नौगजा पीर बाबा एक महान सूफी संत थे जिनकी ऊंचाई करीब नौ गज बताई जाती है। उन्होंने मानवता, प्रेम और समानता का संदेश फैलाया। उनका यह मानना था कि इंसान की पहचान उसके कर्म से होती है, मजहब से नहीं। यही वजह है कि हर धर्म के लोग उन्हें सम्मान और आदर देते हैं। दरगाह में अज़ान, मंदिर की घंटियां और गुरुद्वारे की शबद-कीर्तन एक साथ सुनाई देती हैं, जो आगंतुकों को अद्भुत सुकून और विश्वास का अनुभव कराती हैं।
मन्नतें, चढ़ावा और घड़ियों की परंपरा श्रद्धालु यहां अपनी मुरादें मांगते हैं। किसी को नई नौकरी की दुआ चाहिए तो कोई बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए आता है। दरगाह में प्रसाद के रूप में मिठाई चढ़ाई जाती है, और बीमार लोगों के परिवार झाड़ू और साबुत नमक रखकर बीमारी से मुक्ति की कामना करते हैं। वहीं दरगाह की दीवारों पर लगी सैकड़ों घड़ियां भी यहां की खासियत हैं। स्थानीय मान्यता है कि बाबा की मजार पर घड़ी चढ़ाने से रुका समय फिर सही दिशा में चल पड़ता है। यह परंपरा दशकों पुरानी है और श्रद्धालुओं के बीच गहरी आस्था का प्रतीक बनी हुई है।
नौगजा पीर बाबा का संदेश नौगजा पीर बाबा की दरगाह सिर्फ सहारनपुर का धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत की गंगा-जमुनी तहजीब और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है। यहां हर मजहब का इंसान शांति और इंसानियत की तलाश में आता है। मंदिर की घंटी, अज़ान और गुरुद्वारे की अरदास एक साथ सुनाई देती हैं, जिससे यह साफ संदेश मिलता है कि रास्ते भले अलग हों, मंज़िल एक ही है ईश्वर और इंसानियत।