दिल्ली का नाम बदलने की मांग तेज: भाजपा सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने कहा,
अब इसे ‘इंद्रप्रस्थ’ कहा जाए
1 months ago Written By: ANIKET PRAJAPATI
दिल्ली के चांदनी चौक से भाजपा सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने राजधानी का नाम बदलकर ‘इंद्रप्रस्थ’ करने की मांग उठाई है। इस संबंध में उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखा है। सांसद ने अपने पत्र में कहा है कि दिल्ली भारत की सबसे प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों में से एक है। यह सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता, नीति और लोककल्याण की आत्मा का केंद्र रही है।
पुरानी दिल्ली स्टेशन और एयरपोर्ट का नाम बदलने का सुझाव खंडेलवाल ने अमित शाह से पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का नाम ‘इंद्रप्रस्थ जंक्शन’ और दिल्ली एयरपोर्ट का नाम ‘इंद्रप्रस्थ इंटरनेशनल एयरपोर्ट’ रखने का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली का इतिहास सीधे पांडवों के युग से जुड़ा है और इसी वजह से इसे फिर से अपने पुराने नाम से जोड़ा जाना चाहिए।
‘पांडवों ने यमुना तट पर बसाई थी राजधानी इंद्रप्रस्थ’ भाजपा सांसद ने कहा कि महाभारत काल में पांडवों ने यमुना तट पर अपनी राजधानी इंद्रप्रस्थ बसाई थी। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि दिल्ली के प्रमुख स्थलों पर पांडवों की मूर्तियां लगाई जानी चाहिए ताकि युवा पीढ़ी को अपने गौरवशाली इतिहास और संस्कृति के बारे में पता चल सके। खंडेलवाल ने कहा कि मौर्य और गुप्त काल में भी इंद्रप्रस्थ व्यापार, संस्कृति और प्रशासन का प्रमुख केंद्र रहा था। बाद में तोमर वंश के शासन के दौरान इसे ‘डिल्लिका’ कहा गया, जिससे आगे चलकर ‘दिल्ली’ शब्द बना।
विजय गोयल ने भी उठाई थी नाम बदलने की बात इससे पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल ने भी दिल्ली के नाम पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था कि अंग्रेजी में इसे ‘Delhi’ लिखा जाता है, जबकि पूरा देश ‘दिल्ली’ बोलता है। उन्होंने मांग की थी कि नए सरकारी लोगो में ‘Delhi’ की जगह ‘Dilli’ लिखा जाए। गोयल ने कहा था कि यह सिर्फ नाम बदलने की बात नहीं है, बल्कि हमारी परंपरा और पहचान से जुड़ा मामला है।
दिल्ली नाम की उत्पत्ति से जुड़ी चार मान्यताएं इतिहासकारों के अनुसार, दिल्ली का नाम चार अलग-अलग कहानियों से जुड़ा है। प्राचीन काल में इसे ‘इंद्रप्रस्थ’ कहा जाता था। कहा जाता है कि जब कौरवों और पांडवों के बीच हस्तिनापुर का बंटवारा हुआ, तो पांडवों को खांडवप्रस्थ नामक जंगल मिला। उन्होंने उसे बसाकर इंद्रप्रस्थ नाम दिया। एक मान्यता के अनुसार, तोमर वंश के राजा ने जब एक लोहे की कील को जमीन से निकलवाया, तो वह ढीली रह गई और इसी से ‘ढीली’ या ‘दिल्ली’ नाम पड़ा। दूसरी कथा के मुताबिक, तोमर काल के ‘देहलीवाल’ सिक्कों से यह नाम विकसित हुआ। कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि दिल्ली भारत की ‘दहलीज’ (देहली) कहलाती थी, जो समय के साथ ‘दिल्ली’ बन गया।
1911 में बनी राजधानी, आज भी कहलाती है ‘देश का दिल’ ब्रिटिश शासन ने 1911 में दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया था और 1931 में इसे औपचारिक रूप से राजधानी का दर्जा मिला। आजादी के बाद भी दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी बनाए रखा गया। इसकी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्ता के कारण इसे आज भी “देश का दिल” (Heart of the Nation) कहा जाता है।