9 साल की कानूनी लड़ाई खत्म... बयान और जांच में खामियों के चलते कोर्ट ने युवक को किया बरी
जानें पूरी बात
6 days ago
Written By: Ashwani Tiwari
Uttar Pradesh News: नोएडा की जिला अदालत ने 9 साल पुराने छेड़छाड़ और पोक्सो एक्ट से जुड़े एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने सबूतों की कमी और पीड़िता के बयान में कई विरोधाभास पाए जाने के बाद आरोपी युवक को सभी आरोपों से बरी कर दिया। यह मामला दिसंबर 2016 का है, जब सूरजपुर थाने में एक युवती ने अपने पड़ोसी पर घर में घुसकर छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने साफ कहा कि पुलिस न तो पीड़िता की उम्र साबित कर पाई और न ही कोई ठोस दस्तावेज अदालत में पेश किया।
लड़की ने लगाया था छेड़छाड़ का आरोप
24 दिसंबर 2016 को युवती ने शिकायत दर्ज कराई थी कि जब उसके माता-पिता काम पर गए थे और वह घर पर अकेली थी, तो आरोपी उसके कमरे में घुस गया और गलत तरीके से छूने लगा। शिकायत के मुताबिक, आरोपी उसे अपने कमरे में ले जाकर कपड़े फाड़ने की कोशिश कर रहा था, लेकिन विरोध करने पर भाग गया और जान से मारने की धमकी भी दी।
चार गवाह हुए पेश
पुलिस ने मामला दर्ज कर जून 2017 में चार्जशीट दाखिल की और सितंबर में आरोप तय हुए। अभियोजन पक्ष ने चार गवाहों को पेश किया, जिनमें लड़की, उसके पिता और दो पुलिसकर्मी शामिल थे। युवती की गवाही इस मामले में सबसे अहम रही, जिसमें उसने बताया कि शिकायत खुद लिखी थी क्योंकि उसके पिता अनपढ़ थे। पिता ने भी बेटी के बयान का समर्थन किया, लेकिन वे प्रत्यक्षदर्शी नहीं थे।
पुलिस की बड़ी चूक
अदालत ने पाया कि पुलिस ने जांच के दौरान लड़की का जन्म प्रमाण पत्र स्कूल से लिया था, लेकिन उसे कभी सबूत के रूप में कोर्ट में पेश नहीं किया गया। न ही कोई स्कूल रिकॉर्ड और न ही मेडिकल एविडेंस अदालत के सामने लाया गया। यही वजह रही कि कोर्ट आरोपी की उम्र और पीड़िता के नाबालिग होने के दावे की पुष्टि नहीं कर सका।
बयान में विरोधाभास
सुनवाई के दौरान पीड़िता के बयानों में समय और स्थान को लेकर विरोधाभास सामने आए। मजिस्ट्रेट को दिए बयान में उसने हमले का समय सुबह 8:30 बताया था, जबकि अदालत में 7:30 कहा। इसके अलावा, लड़की और उसके पिता ने घटना आरोपी के कमरे में होने की बात कही, जबकि पुलिस की साइट रिपोर्ट में गलियारे को घटनास्थल बताया गया।
कोर्ट की टिप्पणी और फैसला
जिला जज विकास नागर ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा कि घटना के वक्त पीड़िता नाबालिग थी। इसके अलावा, बयानों और घटनास्थल को लेकर विरोधाभास मामले को कमजोर कर गया। अंततः आरोपी युवक को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया। हालांकि, कोर्ट ने उसे एक हफ्ते के भीतर सीआरपीसी की धारा 437ए के तहत 50,000 रुपये का निजी मुचलका और दो जमानतें भरने का निर्देश दिया।