काशी का वो रहस्यमयी कुंड, जहां त्रिपिंडी श्राद्ध से मिलती है भटकती आत्माओं को मुक्ति,
खत्म होता है प्रेत बाधा का असर
1 months ago
Written By: Ashwani Tiwari
Uttar Pradesh News: पितृपक्ष का महापर्व शुरू होते ही पूरे देशभर में पितरों के तर्पण और श्राद्ध की परंपरा शुरू हो जाती है। 15 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए विधि-विधान से कर्मकांड करते हैं। काशी, प्रयाग और गया को श्राद्ध और पिंडदान के लिए सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है, लेकिन काशी में मौजूद पिशाच मोचन तीर्थ का महत्व सबसे अलग है। मान्यता है कि यहां पिंडदान और श्राद्ध करने से पितरों को न सिर्फ मुक्ति मिलती है, बल्कि भटकती आत्माओं को भी बैकुंठ जाने का रास्ता खुल जाता है।
महादेव का वरदान और पिशाच मोचन कुंड
वाराणसी में बाबा विश्वनाथ मंदिर से करीब 3 किलोमीटर दूर स्थित पिशाच मोचन तीर्थ का सीधा संबंध भगवान शिव से है। मान्यता है कि स्वयं महादेव ने इस स्थान को वरदान दिया था कि जो भी व्यक्ति यहां स्नान कर अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण करेगा, उसके पितरों की मुक्ति का मार्ग खुल जाएगा। यही कारण है कि पितृपक्ष के दौरान यहां देशभर से श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचते हैं।
त्रिपिंडी श्राद्ध से भटकती आत्माओं को शांति
पिशाच मोचन तीर्थ के महंत नीरज पांडेय के अनुसार यह दुनिया का इकलौता तीर्थ है जहां प्रेत योनि में भटक रही आत्माओं को त्रिपिंडी श्राद्ध के माध्यम से मुक्ति दिलाई जाती है। इस अनुष्ठान में तीन अलग-अलग कलशों पर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शंकर की विधि-विधान से पूजा की जाती है। माना जाता है कि इससे अकाल मृत्यु को प्राप्त आत्माओं को शांति मिलती है और उनका बैकुंठ गमन संभव हो जाता है।
भूत-प्रेत बाधा से छुटकारे की आस्था
इस तीर्थ के बारे में एक और खास मान्यता है। यहां स्नान करने से उन लोगों को भी मुक्ति मिलती है जिन पर भूत-प्रेत या नकारात्मक ऊर्जा का साया होता है। इसलिए यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। पितृपक्ष के 15 दिनों में हर दिन करीब 30 से 40 हजार लोग पिशाच मोचन तीर्थ पहुंचते हैं और पूरे पखवाड़े में यह संख्या लगभग 10 लाख तक पहुंच जाती है।