'हिंदू धर्म का भी नहीं है रजिस्ट्रेशन',
RSS के पंजीकरण पर बोले मोहन भागवत
1 months ago Written By: अनिकेत प्रजापति
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कांग्रेस नेता प्रियांक खड़गे की उस टिप्पणी पर जवाब दिया, जिसमें उन्होंने पूछा था कि राष्ट्र की सेवा का दावा करने के बावजूद संघ एक "अपंजीकृत संगठन" क्यों बना हुआ है। बेंगलुरु में आरएसएस द्वारा आयोजित "संघ की यात्रा के 100 वर्ष: नए क्षितिज" व्याख्यान श्रृंखला में भागवत ने कहा कि संघ की स्थापना 1925 में हुई थी, जो भारत की स्वतंत्रता से पहले की बात है। उन्होंने सवाल किया कि क्या आलोचकों को उम्मीद थी कि उस समय संगठन खुद को ब्रिटिश सरकार के अधीन पंजीकृत कराता।
पंजीकरण और कानूनी मान्यता
भागवत ने बताया कि स्वतंत्रता के बाद भी पंजीकरण अनिवार्य नहीं था। उन्होंने कहा, "गैर-पंजीकृत व्यक्तियों को भी कानूनी दर्जा दिया गया है। संघ को आयकर विभाग और अदालतों ने व्यक्तियों के समूह के रूप में मान्यता दी और आयकर से छूट दी। हमें तीन बार प्रतिबंधित किया गया, जिसका अर्थ है कि सरकार ने हमें मान्यता दी। अदालतों ने हर बार संघ को वैध संगठन के रूप में स्वीकार किया। यहां तक कि हिंदू धर्म भी पंजीकृत नहीं है।"
आरएसएस में हिंदुओं की अनुमति
भागवत ने स्पष्ट किया कि संघ में केवल हिंदुओं को शामिल किया जाता है। उन्होंने कहा कि संघ में आने वाले सभी व्यक्ति भारत माता के पुत्र के रूप में आएं। उन्होंने जोर देकर कहा कि ब्राह्मण, मुसलमान या ईसाई भी शाखाओं में आ सकते हैं, लेकिन उन्हें अपनी अलग पहचान छोड़नी होगी और हिंदू समाज के सदस्य के रूप में आना होगा। संघ में किसी धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता।
आरएसएस का भाजपा के प्रति समर्थन
भागवत ने बताया कि संघ भाजपा का समर्थन इसलिए करता है क्योंकि पार्टी ने राम मंदिर निर्माण की पहल की थी। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस ने यह कदम उठाया होता, तो संघ उनका समर्थन करता। उन्होंने यह भी बताया कि राजनीतिक दल संघियों को अक्सर स्वीकार नहीं करते, लेकिन भाजपा ने संघ के लिए दरवाजा खोला है। संघ का समर्थन पार्टी के कारण नहीं, बल्कि उद्देश्य के कारण है।