संभल शाही जामा मस्जिद विवाद: सर्वे होगा या नहीं?
इलाहाबाद हाईकोर्ट में 2 घंटे चली बहस, अब फैसला रिजर्व
1 months ago
Written By: STATE DESK
Shahi Jama Masjid Sambhal: इलाहाबाद हाईकोर्ट में मंगलवार को संभल की विवादित शाही जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर अहम सुनवाई हुई है। इस दौरान करीब दो घंटे चली बहस के बाद अदालत ने फैसला रिजर्व रख लिया है। दरअसल दीवानी अदालत, संभल के मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश देने के बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया था। जिसके बाद इसके खिलाफ मस्जिद की इंतजामिया कमेटी ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण अर्जी दाखिल की थी। अब इस मामले में कोर्ट के फैसले का इन्तजार हो रहा है।
हाईकोर्ट ने सर्वे पर लगाई थी रोक
8 जनवरी 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में अंतरिम आदेश जारी करते हुए मस्जिद के सर्वे पर रोक लगा दी थी। साथ ही सभी संबंधित पक्षों – यूपी सरकार, ASI, विशेष कमेटी, हिंदू पक्ष और मस्जिद कमेटी – से जवाब मांगा था। मंगलवार को दो घंटे तक चली बहस के बाद अब हाईकोर्ट फैसला सुनाएगा कि सर्वे कराया जाएगा या नहीं।
कोर्ट की ASI पर सख्ती
28 अप्रैल को हुई पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को 48 घंटे के भीतर जवाब दाखिल करने का अंतिम मौका दिया था। इससे पहले ASI ने सर्वे आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण अर्जी दाखिल की थी। मंगलवार की सुनवाई में ASI की ओर से जवाब पेश किया गया, जिससे बहस पूरी हो सकी।
आदेश के खिलाफ मस्जिद कमेटी की याचिका
संभल की दीवानी अदालत द्वारा दिए गए सर्वे आदेश के खिलाफ मस्जिद की इंतजामिया कमेटी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कमेटी का कहना था कि यह आदेश अनुचित है और धार्मिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकता है।
रंगाई-पुताई पर भी हुआ था विवाद
इससे पहले 12 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मस्जिद की बाहरी दीवारों की रंगाई-पुताई की अनुमति दी थी। मस्जिद कमेटी ने रमजान के मद्देनजर यह इजाजत मांगी थी। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि रंगाई-पुताई से किसी भी ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। हिंदू पक्ष ने रंगाई का विरोध करते हुए कहा था कि इससे मंदिर के संभावित साक्ष्य नष्ट हो सकते हैं।
अब हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार
मंगलवार को हुई लंबी बहस के बाद अब हाईकोर्ट यह तय करेगा कि दीवानी अदालत का सर्वे आदेश जायज है या नहीं। साथ ही यह भी स्पष्ट होगा कि मस्जिद कमेटी की आपत्ति कितनी उचित है। इस फैसले पर न सिर्फ कानूनी नजरें टिकी हैं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी इसकी व्यापक प्रतिक्रिया देखी जा सकती है।