सपा को भारी पड़ा पूजा पाल का निष्कासन, बीजेपी ने PDA फॉर्मूले के खिलाफ साधा नया हथियार,
जानिए पूरा समीकरण
1 months ago
Written By: Ashwani Tiwari
Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी (सपा) से विधायक पूजा पाल के निष्कासन ने बड़ा तूफान खड़ा कर दिया है। कौशांबी की चायल सीट से विधायक पूजा पाल को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में 14 अगस्त 2025 को सपा से निकाल दिया गया। इस फैसले ने न सिर्फ सपा को मुश्किल में डाला है, बल्कि बीजेपी को अपने पक्ष में राजनीतिक समीकरण साधने का मौका भी दे दिया है। खासकर ओबीसी वोट बैंक को लेकर यह मामला बेहद अहम माना जा रहा है।
योगी सरकार की तारीफ बनी कारण
बता दें कि पूजा पाल ने विधानसभा के मानसून सत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जीरो टॉलरेंस नीति और माफिया अतीक अहमद के खिलाफ कार्रवाई की खुलकर सराहना की थी। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पति और पूर्व विधायक राजू पाल की हत्या (2005) में उन्हें न्याय दिलाने का काम योगी सरकार ने किया, जबकि सपा ने कभी उनका साथ नहीं दिया। यही बयान सपा नेतृत्व को नागवार गुजरा और अखिलेश यादव ने तुरंत उन्हें निष्कासित कर दिया।
ओबीसी समीकरण में बदलाव की संभावना
यूपी में यादवों के बाद पाल और बघेल समाज को बड़ी ताकत माना जाता है। पूर्वांचल और मध्य यूपी में यह समुदाय कई सीटों पर निर्णायक साबित होता है। राजू पाल की हत्या के बाद सहानुभूति वोट पहले बसपा और फिर सपा को मिला था, जिसकी बदौलत पूजा पाल ने 2007 और 2012 में बसपा से और 2022 में सपा से चुनाव जीता। लेकिन अब उनके सपा से निष्कासन के बाद यह वोट बैंक बीजेपी की ओर झुक सकता है।
बीजेपी के लिए सुनहरा मौका
सोशल मीडिया पर पूजा पाल के बयानों और मुख्यमंत्री योगी से उनकी मुलाकात की तस्वीरों ने अटकलों को हवा दी है कि वे जल्द बीजेपी में शामिल हो सकती हैं। चर्चा है कि पार्टी उन्हें 2027 विधानसभा चुनाव से पहले कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी दे सकती है। विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी उन्हें ओबीसी सम्मान और माफिया विरोधी छवि का चेहरा बनाकर PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले को तोड़ने की रणनीति अपना सकती है।
सपा के फैसले पर उठ रहे सवाल
सपा के इस कदम को विपक्ष और सोशल मीडिया पर कई लोग महिला विरोधी और पिछड़े वर्ग की अनदेखी बता रहे हैं। कुछ ने लिखा कि पूजा ने माफिया के खिलाफ लड़ाई लड़ी और सपा ने उन्हें सजा दे दी। वहीं सपा का कहना है कि पूजा की बीजेपी से नजदीकी और अनुशासनहीनता बर्दाश्त से बाहर थी। लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला सपा के लिए उल्टा पड़ सकता है और गैर-यादव ओबीसी समुदाय में असंतोष पैदा कर सकता है, जिसे बीजेपी पूरी तरह भुनाने की कोशिश करेगी।