'अदालत राज्यपाल की भूमिका को टेकओवर नहीं कर सकती',
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
1 months ago Written By: अनिकेत प्रजापति
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आज अहम फैसला सुनाया है। पांच जजों की संविधान पीठ, जिसकी अगुवाई चीफ जस्टिस ने की, ने स्पष्ट किया है कि अदालत राज्यपाल की भूमिका को अपना नहीं बना सकती। मामला था कि राज्यपालों द्वारा विधानसभाओं से पास हुए विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने और उन पर फैसला करने की प्रक्रिया पर क्या समयसीमा होनी चाहिए। केंद्र और राज्यों की दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास तीन ही विकल्प हैं, सहमति देना, वापस करना या राष्ट्रपति को भेजना और कोई चौथा विकल्प मौजूद नहीं है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल अनिश्चित काल तक किसी विधेयक को रोक नहीं सकते, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने किसी निर्धारित समयसीमा तय करने से इंकार कर दिया है, क्योंकि यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ होगा।
क्या कहा संविधान पीठ ने केंद्र और कई राज्य-मामलों में दायर दलीलों को सुनने के बाद पीठ ने यह स्पष्ट किया कि न्यायालय राज्यपाल के फैसले का विकल्प नहीं बन सकती। अनुच्छेद 200 के मतलब को परिभाषित करते हुए जजों ने कहा कि राज्यपाल के तीन वैकल्पिक और स्पष्ट अधिकार हैं। किसी तरह का चौथा अधिकार कानून में नहीं दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि विधेयकों पर अनिश्चित काल के लिए रोक रखना सही नहीं है। परंतु समयसीमा निर्धारित करने का अधिकार न्यायपालिका के बाहर का मामला है और इसे तय करने से सरकारों के बीच संतुलन बिगड़ सकता है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह फैसला यह निर्णय केंद्र-राज्य संबंधों और संवैधानिक संस्थाओं के कामकाज के लिहाज से महत्वपूर्ण है। कई राज्यों में यह विवाद चलता रहा है कि कब और किस तरह राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति को भेजें। अब यह स्पष्ट हुआ है कि राज्यपाल के विकल्प सीमित हैं। दूसरी ओर, अदालत ने यह भी कहा कि राज्यपाल किसी विधेयक पर अनिश्चितकालीन तालाबंदी नहीं कर सकते। इससे विधानसभा में पास हुए कानूनों के साथ देरी और अनिश्चितता कम हो सकती है।
क्या बदला नहीं सुप्रीम कोर्ट ने यह तय नहीं किया कि राष्ट्रपति को भेजने या उस पर निर्णय लेने के लिए कितने दिन भीतर होना चाहिए। कोर्ट का मानना है कि ऐसी समयसीमा लगाने से संवैधानिक शक्तियों के विभाजन पर असर पड़ेगा। इसलिए यह विषय नीति-निर्माता और विधानिक प्रक्रियाओं के दायरे में छोड़ा गया है।