सुप्रीम कोर्ट ने कहा गुरुद्वारे जाने से इनकार करने वाला सैनिक भारतीय सेना के लिए उपयुक्त नहीं;
ईसाई अधिकारी की याचिका खारिज
1 months ago Written By: Aniket prajapati
सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ईसाई सैनिक के मामले पर कड़ा रुख अपनाया और कहा कि जो सैनिक अपने धार्मिक विश्वास के नाम पर साथी अधिकारी के आदेश पर गुरुद्वारे में पूजा करने से मना कर दे, वह भारतीय सेना की धर्मनिरपेक्ष परंपरा और अनुशासन के अनुकूल नहीं है। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसी हरकत से संदेश गलत जाता है और यह घोर अनुशासनहीनता है। उच्चतम न्यायालय ने लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन की याचिका को खारिज कर दिया, जिससे उनका बर्खास्त होना बरकरार रहा।
क्या हुआ था — घटना की पृष्ठभूमि मामले का मूल तथ्य यह है कि लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन (तीसरी कैवेलरी रेजिमेंट) को एक वरिष्ठ अधिकारी के आदेश पर गुरुद्वारे में दर्शन व पूजा के लिए जाना था। कमलेसन ने आदेश मानने से मना कर दिया और कहा कि उनका एकेश्वरवादी ईसाई धर्म उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं देता। इस असहयोग और आदेश न मानने को सेना ने अनुशासनहीनता मानकर उनसे निपटा उन्हें सेवा से हटाया गया।
हाई कोर्ट का रुख और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी इस साल मई में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी इस घटना को अनुशासनहीनता बताया था और कहा था कि कमलेसन ने वैध सैनिक आदेश के ऊपर अपने धर्म को रखा। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी वही रुख अपनाया और कहा कि ऐसे झगड़ालू रवैये वाले व्यक्ति सेना में बने रहने के हकदार नहीं हैं। पीठ ने सख्त भाषा में पूछा क्या इस तरह का संदेश देना ठीक है? क्या ऐसे लोग सेना में रहने के योग्य हैं?
न्यायालय ने क्या कहा — सेना, अनुशासन और राष्ट्रीय सुरक्षा सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सेना में पवित्रता और अनुशासन का विशेष महत्त्व है और व्यक्तिगत धार्मिक विश्वासों के कारण वैधानिक आदेश ठुकराना स्वीकार्य नहीं होगा। पीठ ने कहा कि कमलेसन किसी व्यक्तिगत रूप से अच्छे अधिकारी हो सकते हैं परंतु "भारतीय सेना के लिए फिट" नहीं माहिर होते। इसलिए उनकी सेवा समाप्ति वैधानिक और उचित मानी गई।