सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद बदलेगा यूपी का पुराना कानून,
डीएम की पत्नी अब नहीं बनेंगी स्वतः समिति अध्यक्ष
1 months ago Written By: Aniket Prajapati
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी के बाद उत्तर प्रदेश सरकार अब जिला महिला समिति से जुड़ा 165 साल पुराना औपनिवेशिक कानून बदलने जा रही है। लंबे समय से यह नियम था कि जिले की महिला समिति का अध्यक्ष स्वतः जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) की पत्नी होती है। कोर्ट ने इसे पूरी तरह गैर-लोकतांत्रिक बताते हुए कहा कि यह ब्रिटिश काल की सोच है, जिसमें डीएम को राजा की तरह समझा जाता था। मंगलवार को यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी कि नया बिल तैयार है और जल्द ही विधानसभा में पेश होगा। नया कानून लागू होते ही पूरे प्रदेश में समिति संरचना बदल जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, दो महीने में कानून लाने के निर्देश मुख्य न्यायाधीश सूर्या कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच के सामने यूपी सरकार ने बताया कि नया बिल तैयार कर लिया गया है। कोर्ट ने कहा था कि अब समय आ गया है कि डीएम को “राजा” समझने वाली औपनिवेशिक मानसिकता को खत्म किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि दो महीने के अंदर यह बिल विधानसभा से पास कराया जाए, फिर राज्यपाल की मंजूरी लेकर गजट में अधिसूचना जारी कर इसे लागू किया जाए। कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि नया कानून लागू होते ही सभी जिलों में तुरंत प्रभाव से नई व्यवस्था लागू होगी।
बुलंदशहर जिला महिला समिति ने उठाया था मामला यह मामला बुलंदशहर जिला महिला समिति की ओर से दाखिल किया गया था। सुनवाई के दौरान पूर्व स्वतः अध्यक्ष — जो डीएम की पत्नी थीं — ने इस्तीफा दिया, क्योंकि उनके पति का तबादला हो चुका था। कोर्ट ने पहले ही कहा था कि किसी भी सोसाइटी में अफसरों के पति/पत्नी या परिवारवालों को सिर्फ पद के आधार पर स्वतः अधिकार नहीं दिया जा सकता। सोसाइटी को पूरी तरह लोकतांत्रिक ढांचे पर चलना चाहिए और सदस्यों का चुनाव से चयन होना जरूरी है। नए कानून के लागू होने तक बुलंदशहर की पुरानी कमेटी ही कामकाज संभालेगी।
पूरे प्रदेश में बदलेगी महिलाओं की समितियों की संरचना यूपी में लगभग 75 जिला महिला समितियां हैं, और लंबे समय से सभी जगह डीएम की पत्नियां स्वतः अध्यक्ष होती रही हैं। अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सभी जिलों में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कर नई अध्यक्ष व पदाधिकारी चुने जाएंगे। शिक्षाविदों और महिला संगठनों ने इस कदम का स्वागत किया है। उनका कहना है कि यह सिर्फ कानून बदलाव नहीं, बल्कि लैंगिक समानता और लोकतांत्रिक मूल्यों की ओर बड़ा कदम है।