उत्तर प्रदेश में अवैध मदरसों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई,
जानिए किन जिलों में चला बुलडोजर
2 days ago
Written By: Ashwani Tiwari
UP Madrasa: उत्तर प्रदेश में मदरसों के खिलाफ की गई कार्रवाई हाल के वर्षों में एक प्रमुख मुद्दा बनकर उभरी है। राज्य सरकार ने अवैध मदरसों, सरकारी जमीन पर अतिक्रमण और वित्तीय अनियमितताओं के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि किन जिलों में कार्रवाई हुई, किस कानून के तहत यह कार्रवाई की गई, मौलानाओं और मुस्लिम संगठनों की प्रतिक्रिया क्या रही, और सरकार का पक्ष क्या है।
किन जिलों में हुई कार्रवाई?
उत्तर प्रदेश सरकार ने नेपाल सीमा से सटे जिलों में अवैध मदरसों और धार्मिक संरचनाओं के खिलाफ अभियान चलाया है। इनमें श्रावस्ती, बहराइच, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज और बलरामपुर शामिल हैं। श्रावस्ती में दो दर्जन से अधिक मदरसों को नोटिस जारी किए गए, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सरकार को इन मदरसों को गिराने से रोक दिया है। आजमगढ़ में SIT जांच के बाद 219 अवैध मदरसों के खिलाफ FIR दर्ज की गई। यह जांच 2009-10 में बिना भौतिक सत्यापन के दी गई मान्यता और वित्तीय सहायता में अनियमितताओं के कारण शुरू हुई थी। महराजगंज जिले में प्रशासन ने 34 मदरसों और धार्मिक संरचनाओं को सरकारी जमीन पर अतिक्रमण के लिए नोटिस जारी किए। दो मदरसों को सील किया गया और दो धार्मिक संरचनाओं को गिराया गया।
किस कानून के तहत हुई कार्रवाई?
उत्तर प्रदेश सरकार ने 2004 के उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम के तहत मदरसों को मान्यता दी थी। हालांकि, मार्च 2024 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस अधिनियम को असंवैधानिक घोषित किया, यह कहते हुए कि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। बाद में, नवंबर 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता को आंशिक रूप से बरकरार रखा, लेकिन फाजिल (स्नातक) और कामिल (स्नातकोत्तर) पाठ्यक्रमों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम के प्रावधानों के साथ टकराव में पाते हुए असंवैधानिक घोषित किया। इसके अलावा, बागपत जिले में कई मदरसों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत नोटिस जारी किए गए, जिसमें कहा गया कि ये मदरसे अधिनियम के तहत अनुमोदित नहीं हैं और उन्हें बंद किया जाना चाहिए या जुर्माना देना होगा।
मौलानाओं और मुस्लिम संगठनों की प्रतिक्रिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद, उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा कि यह निर्णय 20 वर्षों बाद आया है और इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जानी चाहिए। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने उत्तर प्रदेश सरकार के धार्मिक मदरसों के खिलाफ आदेश को असंवैधानिक बताया और इसे अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन कहा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए, जमीयत उलेमा-ए-हिंद और जमात-ए-इस्लामी हिंद ने इसे न्याय की जीत और अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकारों की रक्षा के रूप में बताया।
सरकार का पक्ष
उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि अवैध अतिक्रमण और गैर-मान्यता प्राप्त धार्मिक या शैक्षणिक संस्थानों को हटाने के लिए कार्रवाई की जा रही है, विशेष रूप से नेपाल सीमा से सटे 10 किमी क्षेत्र में। राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह अभियान कानून के तहत चलाया जा रहा है और इसका उद्देश्य सरकारी जमीन की रक्षा करना है।