यूपी पुलिस के खुलासों की पोल: चोरी का सामान बरामदगी में चौथाई भी नहीं मिलता,
पीड़ित होते हैं मायूस
1 months ago Written By: संदीप शुक्ला
यूपी के कई जिलों में लगातार हो रही चोरी और लूट की घटनाओं ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मेहनत और वर्षों की कमाई से लोगों ने जो संपत्ति जुटाई होती है, चोर उसे मिनटों में साफ कर देते हैं। इसके बाद पीड़ित थानों के चक्कर लगाते रहते हैं, लेकिन सच यह है कि चोरी गए सामान का चौथाई हिस्सा भी बरामद नहीं हो पाता। कई मामलों में पुलिस खुलासे का दावा तो कर देती है, लेकिन असल में पीड़ितों को उनका खोया सामान वापस नहीं मिलता। लखनऊ से लेकर लखीमपुर-खीरी तक ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनसे यह स्थिति और स्पष्ट हो गई है।
लखीमपुर-खीरी: खुलासे के बावजूद मायूस हुए पीड़ित लखीमपुर-खीरी जिले के मैगलगंज थाना क्षेत्र में 25 जून 2025 को बख्तियारपुर निवासी मनोज कुमार के घर हुई चोरी का पुलिस ने 8 अगस्त को खुलासा किया। पुलिस ने चोरों के गिरोह को पकड़ने का दावा किया, लेकिन पीड़ित का आरोप है कि चोरी गया सामान लगभग बरामद नहीं हुआ। इसी तरह 24 जून की रात कोलौरा गांव निवासी सुनील के घर लाखों की चोरी हुई। पुलिस ने दोनों घटनाओं का राजफाश कर दिया, लेकिन सामान गायब ही रहा। परिवार का आरोप है कि "चोर तो पकड़े गए, पर हमारा माल कहां है?"
लखनऊ में भी खुलासे अधूरे, पीड़ितों की निराशा बढ़ी राजधानी लखनऊ में भी कई मामलों ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं। बीते महीनों एसडीएम अनामिका श्रीवास्तव के घर हुई लाखों की चोरी का खुलासा कर मड़ियांव पुलिस ने तीन चोर पकड़े, लेकिन बरामदगी बेहद कम रही। पूर्वी जोन में बैंक के लॉकर से करोड़ों के गहने उड़ाने वाले गिरोह का पुलिस ने एनकाउंटर कर पर्दाफाश किया, लेकिन गहने जमा करने वाले पीड़ित आज भी खाली हाथ हैं।
फर्जी खुलासे बने बड़ी समस्या कई बार पुलिस एक चोर या लुटेरे को पकड़कर क्षेत्र में हुई कई पुरानी चोरियों का ठीकरा उसके सिर फोड़ देती है। कागजों में केस वर्कआउट दिखा दिया जाता है, लेकिन चोरी गई संपत्ति बरामद नहीं हो पाती। इससे पीड़ितों का भरोसा टूटता है और पुलिस की छवि पर भी सवाल उठते हैं।
लोगों को क्या मिलता है? बस फाइलों में खुलासे, जमीन पर खाली हाथ चोरी का खुलासा और चोरों की गिरफ्तारी से पुलिस अपनी पीठ थपथपाती है, लेकिन पीड़ित अब भी अपनी खोई चीजों का इंतजार करते रहते हैं। बरामदगी कम होने, जांच में लापरवाही और फर्जी खुलासे जैसी समस्याएँ यूपी में पुलिसिंग की सच्चाई को सामने रखती हैं।